
सेवा राम यात्री
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कथाकार, व्यंग्यकार और उपन्यासकार से.रा. (सेवा राम) यात्री (91) का निधन हो गया। उन्होंने 18 कथा संग्रह, 33 उपन्यास, 2 व्यंग्य संग्रह, 1 संस्मरण, एक संपादित कथा संग्रह का सृजन किया। उनके निधन से जिले के साहित्यकारों में शोक की लहर दौड़ गई। उनके अवसान को हिंदी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति बताया। साहित्यकारों ने कहा कि सेवाराम हिंदी साहित्य की सेवा एक यात्री बनकर जीवनभर करते रहे।
राजी-खुशी पूछी और मिला आशीर्वाद
से.रा. (सेवा राम) यात्री का अलीगढ़ से गहरा नाता था। अलीगढ़ में वर्ष 1976 में शिलापंख पत्रिका में उन पर विशेषांक निकाला गया था। पत्रिका के संपादक डॉ. राजेंद्र गढ़वालिया थे। वेद प्रकाश सरिता और मैं उप संपादक थे। संपादन विषय को लेकर उनसे उनके आवास पर मिले थे। मेरी किताब शऊर की दहलीज सहित दो पुस्तकों की समीक्षा की थी। वह बहुत शरीफ, शालीन, विद्वान लेखक थे। से.रा. यात्री से फोन पर की बातों का सिलसिला पहले की तरह लगातार जारी नहीं रहा। यदा-कदा मैं ही फोन करके राजी-खुशी पूछ लिया करता था। अक्तूबर की एक शाम अचानक बैठे- बैठे उनका ध्यान आया। वह भी इस शिद्दत से कि उनका फोन नंबर ढूंढने- मिलाने में जुट गया। लैंडलाइन वाले नंबर पर कोशिश की, वह शायद अब चालू नहीं था, मोबाइल उठा नहीं। दूसरे दिन भी जब नहीं उठा तो उनके पत्रकार पुत्र का नंबर मिलाया। उन्होंने घर पर पहुंच कर बातें कराने का आश्वासन दिया लेकिन यात्री जी से सीधे- सीधे बात तीन -चार दिन तक नहीं हुई। उस शाम, हां, 10 अक्तूबर 2023 की शाम जब उनके पुत्र का नंबर मिलाया तो उधर से नारी स्वर सुनाई दिया। यात्री जी से बात करने की इच्छा जताई। उनके स्वास्थ्य के ठीक न होने की बात कह कर करीब-करीब ना ही होने वाली थी कि मैंने जानना चाहा कि आप कौन बोल रही हैं। मालूम हुआ कि वे उनकी पौत्री थीं। मैंने खुद के बारे में बताते हुए इस बार थोड़ा स्नेह और आग्रह के साथ कहा तो सुनाई दिया- ठीक है एक मिनट, मैं फोन उन्हें देती हूं पर वो साफ बोल नहीं पाएंगे।
मैंने कहा- मेरे दो तीन वाक्य आप उन तक पहुंचा देना। उन्होंने मेरा नाम बताते हुए फोन यात्री जी को थमाया, लेकिन उनकी आवाज उनके कहे को मेरे पास तक नहीं पहुंचा पाई। मैंने उनकी पौत्री से फिर आग्रह किया- बेटे फोन का स्पीकर ऑन करके उनके कान के बिल्कुल करीब ले आओ बस मैं उन्हें प्रणाम कर लेना चाहता हूं। उधर से कहा गया हां -हां बोलिए! मैंने नाम और अलीगढ़ की याद दिला कर प्रणाम निवेदित किया, शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की, इस बार उधर की आवाज मंद- मंद ही सही, सुनाई भी दी, समझ भी आई – बहुत बहुत धन्यवाद प्रेम कुमार! पौत्री ने उनका कहा दोहराया- उन्हें अच्छा लगा है अंकल, सुन कर होंठ थोड़ा मुस्कुराए हैं, खुश हो कर धन्यवाद कह रहे हैं और हां, लेटे हाथ के पंजे को उठाने की कोशिश कर रहे हैं शायद आशीर्वाद देने के लिए। पौत्री को कई बार धन्यवाद दिया, इतना यह सब कहने और सुनने के बाद देह भर में अजीब सी एक खुशी भर गई थी। देर तक बैठे -बैठे दिल की बढ़ चली उस धड़कन को सुनने के साथ मन के सिहरने के एहसास को चुपचाप जीता- पीता रहा था। -प्रेमकुमार, वरिष्ठ साहित्यकार
हिंदी साहित्य की अपूरणीय क्षति
वर्तमान साहित्य के संपादक के रूप में से.रा. यात्री ने कई वर्षों तक कार्य किया, जहां उन्होंने हिंदी के नए-पुराने अनेक रचनाकारों को मंच दिया। अपनी रचनाओं में वे ठेठ ग्रामीण अंदाज के साथ अपने सहज-सरल लेखन के लिए जाने जाते हैं। उनकी बातचीत के हाव-भाव में भी उनका वह गंवई अंदाज दिखाई देता रहा है। ऐसे रचनाकार का अवसान हिंदी साहित्य की अपूरणीय क्षति है।-प्रो. शंभुनाथ तिवारी, साहित्यकार
सेवाराम यात्री हिंदी के बड़े कहानीकार थे। साहित्यिक आंदोलन से उनका गहरा जुड़ाव था। हिंदी साहित्य की प्रतिष्ठित वर्तमान साहित्य पत्रिका के संपादक थे। कृष्ण प्रताप स्मृति कहानी पुरस्कार प्रतियोगिता में मेरी कहानी “दावत” को पुरस्कृत किया गया था। से.रा. यात्री उस समय महत्वपूर्ण पत्रिका के संपादक थे। वह बड़े दिल के इन्सान थे। उनका जाना दुखदायी है।-प्रो. आशिक अली बलौत, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, एएमयू