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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023
– फोटो : AMAR UJALA

विस्तार


मध्य प्रदेश की 16वीं विधानसभा चुनाव के लिए 26 दिन चले प्रचार अभियान में सत्ता के मुख्य दावेदार भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने जमकर जोर लगाया। खूब आरोप-प्रत्यारोप हुए। व्यंग्यबाण चले। अयोध्या व हिंदुत्व के मुद्दे भी आए। लेकिन, ध्रुवीकरण वाली तस्वीर नहीं बनी। चुनाव एलान से पहले कमजोर आंकी जा रही भाजपा चुनाव को कांटे की लड़ाई में खींच लाई। भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर थामने के लिए चुनाव को मोदी बनाम कमलनाथ बनाने की रणनीति अपनाई तो कांग्रेस ने मोदी फैक्टर से बचने के लिए कमलनाथ बनाम शिवराज पर चुनाव केंद्रित करने में ताकत लगाई। मगर, ‘एमपी के मन में मोदी और मोदी के मन में एमपी’ तथा संकल्प पत्रों पर ‘मोदी की गारंटी’ के प्रचार ने आखिरकार चुनाव को कमल बनाम कमलनाथ से आगे मोदी बनाम कांग्रेस पर केंद्रित कर दिया।

दावे दोनों तरफ से 150 सीटें जीतने के हैं। लेकिन भोपाल (मध्य भारत) से विंध्य, मालवा से निवाड़, महाकौशल से ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड तक की 3 हजार किमी से ज्यादा लंबी यात्रा में करीब 30 से 35 सीटें कांटे की लड़ाई में नजर आई हैं। लग रहा है कि करीब 20 सीटों की हार-जीत बागियों को मिलने वाले वोटों से ही तय हो पाएगी। दोनों दलों को करीब 10-15 सीटों पर भितरघात का खतरा है। अब  सबकी नजरें इसपर टिकी हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव के रिहर्सल के तौर पर देखे जा रहे इस चुनाव में मध्य प्रदेश के 5.61 करोड़ मतदाता मोदी की गारंटी पर मुहर लगाते हैं या कमलनाथ को फिर गद्दी देकर कड़ा संदेश सुनाते हैं।

महिला आरक्षण और जाति जनगणना का मुद्दा ज्यादा नहीं चला : केंद्र सरकार ने संसद व विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने का कानून बनाया। धीरे-धीरे दोनों ही पार्टियों ने इस मुद्दे से फोकस हटा लिया। इसी तरह बिहार में जातिगत गणना के आंकड़े सामने आने के बाद ये चुनाव हो रहे हैं। प्रारंभ में कांग्रेस ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की कोशिश की। लेकिन, जैसे ही भाजपा की ओर से पीएम व सीएम के पदों पर पिछड़ों को अवसर देने से जुड़े सवाल उठने शुरू हुए, पार्टी ने इस पर फोकस कम कर दिया।

2.72 करोड़ महिला मतदाताओं की अहम भूमिका

मध्य प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या 2.72 करोड़ से ज्यादा है। भाजपा और कांग्रेस ने इनका समर्थन पाने के लिए नकद हस्तांतरण के बड़े वादे किए हैं। भाजपा ने देना शुरू कर दिया है। आगे बढ़ाने की बात की है। कांग्रेस ने आकर देने को कहा है। देखना होगा, महिलाएं किस पर भरोसा जताती हैं। जानकार बताते हैं कि मतदान में महिलाओं की भागीदारी सबसे अहम होगी।

छिंदवाड़ा बनाम बुधनी मॉडल भी रहा चर्चा में

कांग्रेस ने कमलनाथ के संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा के विकास कार्यों को एक मॉडल के तौर पर प्रचारित किया।  कमलनाथ नौ बार यहां से सांसद रहे हैं। यहां कई नामी उद्योग लगाने में भी कमलनाथ की भूमिका बताई जाती है। जवाब में भाजपा सीएम शिवराज के चुनाव क्षेत्र बुधनी में कराए गए काम मॉडल के तौर पर गिना रही है। भाजपा कहती है कि बुधनी घाट रोड, नर्मदा घाटी का विकास, कृषि कॉलेज व अस्पताल की स्थापना के अलावा भैरूंदा-रेहटी-बुदनी नेशनल हाइवे, मेडिकल कालेज, आठ महाविद्यालय, चार आईटीआई, एक पॉलीटेक्निक व चार सीएम सनराइज स्कूलों की स्थापना के साथ क्षेत्र में करीब 550 करोड़ रुपये से सड़कों का जाल बिछाया गया है।

प्रज्ञा ठाकुर का चुनाव में पता नहीं

इस चुनाव में हिंदुत्व और राम मंदिर की बात जरूर हुई लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव की तरह नहीं। जानकार बताते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में भोपाल से सांसद प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर और कांग्रेस से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह आमने-सामने थे। पूरा चुनाव ध्रुवीकृत हो गया था। इस बार पूरा विधानसभा चुनाव बीत गया, प्रज्ञा का पता नहीं चला।

भाजपा की ताकत

  1. अपने सबसे बड़े ब्रांड पीएम नरेंद्र मोदी को चुनावी चेहरा बनाया। इससे भाजपा सीधी लड़ाई में आ गई।
  2. चुनाव से पहले लाडली बहना योजना का एलान व कई किस्तों का बहनों के खातों में भुगतान। किसान सम्मान निधि की एक किस्त चुनाव से ठीक पहले किसानों के खाते में पहुंची। कांग्रेस के वादे से 50 रुपये कम 450 रुपये में ही गैस सिलिंडर देने के वादे पर अमल।
  3. कांग्रेस के भारी-भरकम चुनावी वादों की गारंटी से के मुकाबले ध्यान हटाने और भाजपा के अपने संकल्प पत्र के वादों को पूरा करने के लिए मोदी की गारंटी का प्रचार।
  4. बड़े मंत्रियों व सांसदों को चुनाव में उतारने से कांग्रेस को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ी। जीत पक्की मानी जा रही सीटों पर भी बड़े नेताओं के रोड शो व सभाएं करानी पड़ीं।
  5. चुनाव के बीच में ही गरीबों को अगले पांच वर्ष तक मुफ्त राशन देते रहने का एलान। चुनाव से दो दिन पहले आदिवासियों के कल्याण से जुड़ी बड़ी योजना का एलान। मध्य प्रदेश में 47 सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। पिछले चुनाव में भाजपा आदिवासियों के लिए आरक्षित सिर्फ 16 सीटें ही जीत पाई थी। 2013 में 31 एसटी सीटें जीती थीं।

भाजपा की कमजोरी

  1. सीएम चेहरे पर असमंजस। शिवराज चौहान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया। हालांकि वह  आक्रामक प्रचार अभियान में जुट रहे।
  2. संकल्प पत्र मतदान से एक सप्ताह पहल जारी। लाडली बहनों को आर्थिक सहायता के साथ मकान और किसानों के गेहूं व धान कांग्रेस से अधिक दर पर खरीदने के वादे को किसानों तक पहुंचाने के लिए समय की कमी।
  3. लाडली बहना योजना की धनराशि 1250 रुपये से बढ़ाकर 3000 तक ले जाने का वादा किया, लेकिन घोषणापत्र में जिक्र नहीं।
  4. केंद्रीय मंत्रियों व सांसदों को उतारने से एक साथ कई सीएम चेहरों की चर्चा से मतदाताओं में भ्रम।
  5. केंद्रीय मंत्री व दिमनी से विधायक प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे से जुड़े वीडियो नियमित अंतराल पर सामने आए। इसमें सैकड़ों करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। कांग्रेस ने मुद्दा बनाया, भाजपा ने चुप्पी साधी।

कांग्रेस की ताकत

  1. मुख्यमंत्री चेहरे पर कोई भ्रम नहीं। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ फिर सीएम चेहरा।
  2. सत्ता विरोधी लहर का जबरदस्त प्रचार। इसे अपने पक्ष में भुनाने के लिए प्रचार तंत्र का आक्रामक उपयोग।
  3. मतदान से एक महीने पहले वचनपत्र। जनता में अपने वादे पहुंचाने का पर्याप्त समय।
  4. दो लाख खाली सरकारी पदों पर भर्ती, महिलाओं को 1500 रुपये हर महीने, रसोई गैस 500 रुपये में, किसानों को कर्जमाफी व 2600 रुपये में गेहूं व 2500 रुपये में धान खरीदने का वादा। बिजली के 100 यूनिट बिल माफ व 200 यूनिट हाफ करने का वादा। पूरे चुनाव में जनता के बीच इसकी चर्चा रही।
  5. प्रदेश के कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन बहाल करने का वादा। शहरी क्षेत्रों में यह बड़े मुद्दे के रूप में सामने आया।

कांग्रेस की कमजोरी

  1. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच के मतभेद सार्वजनिक हुए। भाजपा ने मुद्दा बनाया। माहौल प्रभावित हुआ।
  2. कांग्रेस का वचन पत्र जारी होते समय कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा जैसा कोई बड़ा नेता शामिल नहीं हुआ। केंद्र व राज्य नेतृत्व के बीच सामंजस्य में कमी का संदेश गया।
  3. जातिगत गणना को पार्टी ने मुद्दा बनाया। भाजपा ने देश में पीएम और एमपी में पिछड़ा वर्ग से सीएम बनाने पर सवाल किया। पार्टी का मुद्दा कमजोर हुआ।
  4. अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह से जुड़ी होर्डिंग पर सवाल के बाद भाजपा के हमलों से बैकफुट पर आना पड़ा। भाजपा को इस भावनात्मक मुद्दे को ज्यादा ताकत से प्रचारित करने का मौका मिला।
  5. भाजपा का कांग्रेस के परिवारवाद पर प्रहार। पीएम मोदी सहित पूरी भाजपा लीडरशिप ने कमलनाथ व दिग्विजय सिंह पर अपने बेटों को स्थापित करने की लड़ाई लड़ने का आरोप लगाया।

शिवराज व कमलनाथ के सियासी भविष्य पर नजर

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सीएम चेहरा नहीं हैं, लेकिन चुनाव लड़ रहे हैं। तय नहीं है कि आगे उनका सियासी भविष्य क्या होगा? कांग्रेस में कमलनाथ 75 की उम्र पार कर गए हैं, लेकिन सीएम चेहरा हैं। अगले चुनाव तक वह 80 वर्ष से अधिक के हो जाएंगे। जाहिर है यह चुनाव उनके लिए बेहद अहम है। दिमनी से चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, नरसिंहपुर से केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल और निवास से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, इंदौर-1 से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, सतना से सांसद गणेश सिंह, जबलपुर पश्चिम से सांसद राकेश सिंह, सीधी से सांसद रीती पाठक और गाडरवारा से सांसद उदय प्रताप सिंह पर सभी की निगाहें टिकी हैं। इनमें कई सीएम के चेहरे या भविष्य की अन्य महत्वपूर्ण भूमिका में देखे जा रहे हैं।



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