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– फोटो : Amar Ujala/Rahul Bisht
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भोपाल के चौक इलाके की संकरी गलियों में यहां की सियासत और विरासत दोनों देखी जा सकती है। खाने-पीने की लजीज दुकानों से लेकर हर छोटी बड़ी खरीदारी का एक बड़ा और पुराना मशहूर अड्डा है भोपाल का चौक इलाका। इसी इलाके में एक बड़ी मशहूर और खाने पीने की पुरानी दुकान है “सोनू मोनू की नमकीन” शॉप। शाम के साढ़े पांच बज रहे थे। गर्मागर्म समोसे और कचौड़ियों के लिए लाइन लगी थी। दुकान पर बैठे सोनू जैन समोसे में हरी और लाल चटनी के साथ बेसन के सेव डालते हुए बताते हैं कि यहां की सियासत भी ऐसी ही है। कुछ खट्टी, कुछ मीठी और कुछ कुरकुरी सी। वह कहते हैं कि 1993 में अयोध्या में जब बाबरी विध्वंस हुआ, तो यहां पर कांग्रेस चुनाव हार गई। लेकिन उसके बाद से लेकर अब तक यहां पर कांग्रेस का झंडा बुलंद रहा है। इस दुकान पर बात जब सियासत की चली, तो लोगों ने बताया कि मामला यहां पर इस बार थोड़ा टाइट हो गया है। समूचे मध्यप्रदेश में भोपाल ही एक ऐसा शहर है जहां की दो विधानसभा सीटों से मुस्लिम प्रत्याशी सदन में पहुंचे हैं। अमर उजाला ने इन दो विधानसभाओं के साथ समूचे भोपाल की सियासत की जमीनी हकीकत जानने-समझने की कोशिश की।
“सोनू मोनू की नमकीन” वाली दुकान पर खड़े चौक के सर्राफा बाजार के व्यापारी अमित मिगलानी कहते हैं कि यह इलाका कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। वह कहते हैं कि यह भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट है और यहां पर कांग्रेस के आरिफ अकील लगातार विधायक रहे हैं। लेकिन इस बार उनकी तबीयत नासाज हुई, तो बेटे आतिफ अकील को सियासी मैदान में उतार दिया। अब आतीफ अकील कांग्रेस में कितनी मजबूती से भारतीय जनता पार्टी से दो-दो हाथ कर पाएंगे, इसे लेकर चर्चाएं हो रही हैं। स्थानीय नागरिक रसूल मोहम्मद बताते हैं कि आरिफ साहब के बेटे अकील की लड़ाई भाजपा से कम उनके चाचा आमिर अकील से ज्यादा है। वह कहते हैं कि इसी सीट पर उनके चाचा और आरिफ के भाई आमिर अकील भी अपने भतीजे अकील से दो-दो हाथ करने के लिए इस सियासी मैदान में उतरे हैं।
भोपाल उत्तर विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व मेयर आलोक शर्मा को सियासी मैदान में उतारा है। इस विधानसभा की सियासी नब्ज को पकड़ने के लिए आम आदमी पार्टी ने मोहम्मद सऊद को सियासी मैदान में उतारा है। जबकि कांग्रेस के ही एक बागी नेता नासिर इस्लाम भी भोपाल उत्तर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं। स्थानीय नागरिक और यहां पर चूड़ियों की दुकान करने वाले जावेद असलम कहते हैं कि उनके लिए सबसे बड़ा मुद्दा उनके इलाके में होने वाला अतिक्रमण है। अतिक्रमण के चलते ही न जाने कितनी अवैध झोपड़ियां इस इलाके में बस गईं। न किसी जिम्मेदार अधिकारियों का इस ओर ध्यान है और न ही सरकार का। वह कहते हैं कि अगर इन लोगों को सही ढंग से जगह देकर बसाया जाए, तो पुराने भोपाल की तस्वीर ही अलग दिखने लगेगी। इन सियासी मुद्दों के साथ वह आने वाले विधानसभा के चुनाव की पूरी तस्वीर समझाते हुए कहते हैं कि आरिफ साहब के बेटे सियासी मैदान में हैं। बीते दो दशक से ज्यादा तक उनके परिवार ने इलाके की सेवा की है इसलिए वह उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।
इसी तरह भोपाल की मध्य विधानसभा सीट भी कांग्रेस के आरिफ मसूद के हिस्से में आती है। कांग्रेस ने इस बार फिर से आरिफ मसूद को सियासी मैदान में उतारा है। जबकि भारतीय जनता पार्टी से ध्रुव नारायण सिंह इस विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। पुराने भोपाल की विधानसभा सीट के रहने वाले डॉक्टर अलीम कहते हैं कि सियासी लड़ाई इस बार कांग्रेस की सीट पर मजबूत दिख रही है। माहौल अभी भी विधायक आरिफ मसूद के पक्ष में दिख रहा है। इसके पीछे वह तर्क देते हुए कहते हैं कि स्थानीय लोगों की समस्याओं और उनके हक की लड़ाई के लिए आरिफ साहब हमेशा उपलब्ध रहते हैं। हालांकि आलिम का कहना है कि इसी विधानसभा सीट पर 2008 और 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने परचम फहराया था। वह कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी सरकार ने जो लाडली बहना योजना शुरू की है, उसका फायदा लेने वाली महिलाओं की संख्या इस विधानसभा सीट पर भी खूब है। यह कहना कि भारतीय जनता पार्टी यहां पर कमजोर है, तो शायद ठीक नहीं होगा। वह कहते हैं कि महिलाएं खुलकर उतना नहीं बोलती हैं। लेकिन अगर वह इसी योजना के आधार पर वोट करती हैं, तो निश्चित तौर पर तस्वीर भी बदल सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अमित सोनी का कहना है कि भोपाल भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है। यहां की सात विधानसभा सीटों में से चार पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। इसलिए आने वाली 17 तारीख को होने वाले विधानसभा चुनाव में यह कहना गलत होगा कि कोई पार्टी एकतरफा मैदान मारने की स्थिति में है। क्योंकि सियासी तौर पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में ही पूरे मध्यप्रदेश में लड़ाई हो रही है। प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी कमोबेश यही स्थिति है। इस दौरान चौक इलाके में मौजूद आदर्श जैन कहते हैं कि यहां के मुद्दों में प्रमुख मुद्दा शहर में बढ़ रही भीड़ और बेतरतीब हो रही यातायात व्यवस्था है। वह कहते हैं सुनने में पहले ही यह मुद्दे बहुत छोटे लगें, लेकिन हकीकत में यह मुद्दे विधानसभा के चुनाव में बहुत प्रभावी हैं।
भोपाल की एक विधानसभा सीट है नरेला। इसी पर भारतीय जनता पार्टी सरकार में मंत्री विश्वास सारंग विधायक हैं। कांग्रेस ने नरेला सीट पर सियासी समीकरणों को साधते हुए ब्राह्मण चेहरे के तौर पर मनोज शुक्ला को मैदान में उतारा है। आम आदमी पार्टी ने भी इस सीट पर रयास मलिक को टिकट देकर सियासी समीकरणों में सेंधमारी करने की कोशिश तो की है, लेकिन सियासी जानकार कहते हैं कि यहां पर चुनाव भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच में ही हो रहा है। इसी तरह भोपाल की हुजूर विधानसभा सीट के गठन के बाद से भारतीय जनता पार्टी का ही प्रत्याशी चुनाव जीता आया है। 2008 में इस विधानसभा सीट का गठन किया गया और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के रामेश्वर शर्मा विधायक हैं और सियासी ताल ठोक रहे हैं। सिंधियों के इलाके में कांग्रेस ने नरेश ज्ञानचंदानी पर दांव लगाया है और उनको टिकट देकर यहां जातिगत समीकरणों को साधते हुए मजबूत दावेदारी पेश की है।
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौड़ भोपाल की ही गोविंदपुरा विधानसभा सीट से लगातार आठ बार विधायक रहे। इस वक्त उनकी ही सीट पर उनकी बहू कृष्णा गौर विधायक हैं और भारतीय जनता पार्टी से सियासी मैदान में फिर से उतरी हैं। राजनीतिक जानकार दिनेश जैन कहते हैं कि यह सीट भारतीय जनता पार्टी का बढ़ा गढ़ मानी जाती है। हालांकि कांग्रेस ने यहां पर रविंद्र साहू को चुनावी मैदान में उतारा है। ठीक इसी तरह भाजपा का गढ़ रही बैरसिया सीट भी भोपाल के ही हिस्से में आती है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अमित सोनी कहते हैं कि भोपाल की मध्य, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम और नरेला में समेत हुजूर विधानसभा में इस बार कांटे की लड़ाई है। कुछ सीटों पर कांग्रेस तो कुछ पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। जातिगत समीकरणों के लिहाज से इन सीटों पर चुनावी फील्डिंग सजाई गई है और इस आधार के साथ स्थानीय मुद्दों पर लड़ाई लड़ी जा रही है।