जल में लंबे समय तक घुलनशील रहते हैं बारूद के कण

गोविवि रसायन विज्ञान विभाग विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी ने कहा कि दीपावली पर्व पर आतिशबाजी का जबरदस्त प्रदर्शन होता है, जिसमें रोशनी एवं आवाज का अतिरेक पर्यावरण में परिवर्तन उत्पन्न करता है। प्राचीन काल में प्रभाव कम था, क्योंकि बारूद का उपयोग केवल युद्ध के समय होता था। बारूद के द्वारा पर्यावरण में सूक्ष्म कणों की मात्रा ज्यादा हो जाती है और हानिकारक प्रदूषक जैसे की नाइट्रेट्स, सल्फर ऑक्साइड्स, क्लोराइड्स, अमोनिया के जल में घुलनशील आयन उत्पन्न होते है, साथ ही साथ विभिन्न धातु जैसे की मैग्नीशियम, क्रोमियम, कैल्शियम, बेरियम जो की कैंसर जैसे रोगों के कारण होते है ये भी हानिकारक मात्रा में बढ़ जाती है, जल में घुलन शील होने के कारण इनका दीर्घ काल तक प्रभाव बना रहता है। अतिरिक्त मात्रा में कार्बन ब्लैक के उत्सर्जन से अस्थमा जैसे रोग के कारक बनते है।

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प्रदूषण से बचने के लिए करें इको पटाखे का प्रयोग

गोविवि भूगोल विभाग डॉ. अंकित सिंह ने कहा कि पटाखों के निर्माण में विभिन्न धातुओं का प्रयोग किया जाता है, जो भिन्न-भिन्न रंग प्रदान करते हैं। जैसे गुलाबी रंग के लिए लिथियम, सोडियम साल्ट से नारंगी और पीला और बेरियम तथा तांबा सॉल्ट से नीला या हरे रंग की रोशनी होती है। पटाखों के जलाए जाने से वायुमंडल में गैस और धुएं की मात्रा में वृद्धि होती है। इनमें मुख्य रूप से कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बन डाॅइआक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। इससे वायु प्रदूषण में तेजी से वृद्धि होती है, जो आंखों में जलन, सांस लेने में परेशानी पैदा करती है। इससे निकलने वाले एरोसोल से मृदा व जल प्रदूषण भी होता है। जो मानव व जीव-जंतुओं के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध होता है। ऐसे में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए हमें पटाखों को जलाने से बचना चाहिए और हो सके तो इको पटाखें का ही प्रयोग करना चाहिए जो केवल आवाज करते हैं।

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हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश कुमार पांडेय ने कहा कि शोर और प्रदूषण से तनाव होता है, जो ब्लड प्रेशर और शुगर के अलावा हृदय रोगियों के लिए भी हानिकारक है। अचानक तेज आवाज के पटाखे बजने पर हृदय रोगियों को जो झटका लगता है, इससे उनकी तबीयत बिगड़ने की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए शोर को जितना कम किया जा सके, उतना बेहतर होगा।

फिजिशियन डॉ. गौरव पांडेय ने कहा कि शोर और प्रदूषण हर समय मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं। पटाखे जलाने पर उनसे गंधक और पोटैशियम नाइट्रेट समेत कई हानिकारक गैस निकलती हैं। एक साथ चारों तरफ इन गैसों की मात्रा बढ़ने से एयर क्वालिटी इंडेक्स बढ़ जाता है। जहरीली गैसों के चलते सांस लेने में दिक्क्त होने लगती है। सबसे अधिक परेशानी एलर्जी व अस्थमा पेसेंट को होती है। दिवाली के अगले दिन इस तरह के मरीजों की संख्या और अधिक बढ़ती है।

 



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