Khabron Ke Khiladi 'Thorn-hold' elections in MadhyaPradesh, know the equations of political war from analysts?

खबरों के खिलाड़ी का शो मप्र की आर्थिक राजधानी इंदौर में किया गया।
– फोटो : अमर उजाला

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मध्य प्रदेश में चुनावी प्रचार-प्रसार अपने अंतिम पड़ाव की ओर है। 17 नवंबर को वोटिंग है। बीच में दिवाली है, जिससे प्रचार-प्रसार थोड़ा थमेगा। भाईदूज के दो दिन बाद वोटिंग हो जाएगी। अमर उजाला ने मध्य प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी और देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के वरिष्ठ पत्रकारों से संवाद किया। उनसे चुनावों के मुद्दों को समझने का प्रयास किया। दोनों ही प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस की तैयारियों पर चर्चा की। इस संवाद में इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल, राजेश ज्वेल, जयश्री पिंगले, राजेश राठौर और मुकेश तिवारी शामिल हुए।

मतदान के कुछ दिन शेष हैं, अभी क्या लग रहा है?

वरिष्ठ पत्रकार राजेश ज्वेल ने कहा कि चुनाव की शुरुआत में लग रहा था कि भाजपा के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर है। चर्चाओं में आ गया था कि कांग्रेस को इसका फायदा होगा। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ा, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने चुनाव अभियान अपने हाथ में ले लिया। सात सांसदों और वरिष्ठ नेताओं को टिकट दिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सभाएं कर रहे हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रणनीतिक बागडोर थामी। इसका असर जमीन पर दिख रहा है। भाजपा ने काफी हद तक रिकवर किया है। जो सीटें भाजपा के लिए कमजोर मानी जा रही थी, वहां हालत सुधरी है। अब तक जो सर्वे आए हैं, उनमें शुरुआती तौर पर पिछड़ी भाजपा ने रिकवर किया है। अब कहा जा सकता है कि यह कांटा-पकड़ चुनाव है। कांग्रेस अब भी जनता के भरोसे हैं। उसे लग रहा है कि सत्ता विरोधी लहर पर सवार होकर वह सत्ता हासिल कर लेगी। इस बार नेक-एंड-नेक प्रतिस्पर्धा चल रही है।  

महिला वोटरों की चुनावों में क्या भूमिका रहेगी?

वरिष्ठ पत्रकार जयश्री पिंगले ने कहा कि चुनाव पूरी तरह महिलाओं पर केंद्रित हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावों से पहले माहौल बदलने की कोशिश की। उनकी सोच में महिलाएं ही थीं। चुनावों का मैदानी खेल बदल दिया। डेढ़ करोड़ महिलाओं को फायदा पहुंचाने की घोषणा लेकर आए। चुनाव आजकल तात्कालिक मुद्दों पर फोकस हो गया है। यह चुनाव मुद्दों से भटक गया है। विकास, शिक्षा से जुड़े मु्द्दे पर कोई बात नहीं कर रहा है। सारा विमर्श इस बात पर है कि किसके खाते में कितना पैसा आ रहा है। कांग्रेस ने भी महिलाओं और स्कूली बच्चों को पैसे देने की योजना घोषित की है। कुल मिलाकर मुफ्त की रेवड़ियों पर मुद्दे केंद्रित हो गए हैं।

क्या भाजपा की बदली रणनीति का असर दिख रहा है?

वरिष्ठ पत्रकार और इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने कहा कि मध्य प्रदेश में छह-सात महीने पहले जो स्थिति थी, उससे भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को अहसास हो रहा था कि शिवराज सिंह चौहान का चेहरा प्रोजेक्ट करना ठीक नहीं होगा। 2018 में शिवराज सिंह चौहान की पसंद के कैंडिडेट्स थे। उस समय सरकार चली गई। केंद्रीय एजेंसियों का फीडबैक भी था। केंद्रीय पदाधिकारी मध्य प्रदेश में घूम रहे थे। इस पर भाजपा के वरिष्ठ नेतृत्व ने प्रचार-प्रसार में शिवराज सिंह चौहान को चेहरा बनाने से परहेज किया। सात बड़े नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा। यह संदेश दिया कि हम शिवराज सिंह चौहान पर निर्भर नहीं है। भाजपा को भी पता है कि मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी तो उसे नुकसान होगा। कांग्रेस के पास भी कोई मुद्दा नहीं है। वह यह मानकर चल रही थी कि जनता भाजपा से नाराज है और उसे जिता देगी। मालवा-निमाड़ से मध्य प्रदेश की सत्ता का रास्ता निकलता है। गैर-आदिवासी नेताओं को आदिवासी सीटों की जिम्मेदारी सौंपी है। भाजपा ने इस समय मालवा-निमाड़ पर फोकस कर रखा है।    

बागी किसके लिए बड़ी मुसीबत, कांग्रेस के लिए या भाजपा के लिए?

वरिष्ठ पत्रकार मुकेश तिवारी ने कहा कि बगावत बहुत बड़ा मुद्दा नहीं रहा है। भाजपा-कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सक्रियता दिखाते हुए काफी हद तक बागियों को संतुष्ट कर लिया है। कुछ जगह चुनौती है। इंदौर जिले की महू और देपालपुर सीटों पर बगावत है। बुरहानपुर में भाजपा के हर्षवर्धन चौहान निर्दलीय लड़ रहे हैं। बाकी ज्यादातर सीटों पर असंतोष को प्रमुख पार्टियों ने थाम लिया है। भाजपा के पक्ष में पिछले सात-आठ दिन में बहुत बड़े बदलाव हुए हैं। भाजपा का जो कार्यकर्ता नाराज था और बाहर नहीं निकल रहा था, वह अब रैलियों और रोड शो में दिखने लगा है। वहीं, कांग्रेस में भी प्रचार-प्रसार ने गति पकड़ी है। मुकाबला अब बराबरी का हो गया है।

पिछले चुनावों से कितना अलग है यह चुनाव?

वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल का कहना है कि भाजपा की चुनावी तैयारियों की बात करें तो वह एक चुनाव के बाद ही दूसरे चुनाव की तैयारी शुरू कर देती है। 2018 में तात्कालिक कारणों और भ्रम की वजह से भाजपा हारी थी। चुनाव से एक साल पहले किसान आंदोलन हुआ था। फिर सपाक्स का आंदोलन हुआ। कांग्रेस ने एक साल पहले ही कर्जमाफी का एलान किया था। इन मुद्दों ने पिछले चुनावों में परिणाम को प्रभावित किया था। भाजपा ने उन चुनावों के बाद काफी हद तक कमियों को दूर किया है। लाड़ली बहना योजना की ही बात करें तो 1.30 करोड़ महिलाओं तक पहुंचने का उद्देश्य है। विधानसभावार बांटें तो 50 हजार महिलाएं प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में लाभान्वित होने की बात कही जा रही है। यह भाजपा के पक्ष में मतदान करेंगी तो पूरा परिदृश्य बदल जाएगा। 

फ्रीबीज की खूब बात हो रही है। क्या यह चुनावी मुद्दा है?

वरिष्ठ पत्रकार राजेश राठौर ने कहा कि अभी चुनावों में क्या होगा, कहना मुश्किल है। चुनाव से ठीक तीन दिन पहले जो भी राजनीतिक दल तैयारी कर लेगा, उसे लाभ होगा। बांटने का खेल चलेगा। 230 विधानसभा सीटों में से कम से कम 50 प्रत्याशी ऐसे हैं, जो शराब, साड़ी बांटने की कोशिश करेंगे। अभी से ऐसे दृश्य आने लगे हैं। यह दुर्भाग्यजनक दृश्य हैं। भाजपा-कांग्रेस ने राजनीति को धंधा बना दिया है। उन्होंने स्कीमों की घोषणा कर दी है। भाजपा की सरकार बने या कांग्रेस की, इससे कोई लेना-देना नहीं है। सवाल यह हो गया है कि कौन कितना बांटेगा? कार्यकर्ताओं को मजदूरों की तरह पैसा दिया जा रहा है। यह ठीक नहीं है।



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