MP Election 2023: The trend of nomination and withdrawal is also shocking

जब चुनावों में 70 प्रतिशत से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में होते हैं तो बिगड़ता है खेल
– फोटो : अमर उजाला



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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में नामांकन वापसी के बाद मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों की स्थिति साफ हो गई है। इस बार प्रदेश की 230 सीटों पर करीब 2533 प्रत्याशी भाग्य आजमा रहे हैं। 30 अक्टूबर तक 4359 नामांकन पर्चे दाखिल किए गए थे। यानी 58 प्रतिशत नामांकन आखिरी पड़ाव तक रहेंगे। बीते बीस सालों के नामांकन के आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं। ट्रेंड देखें तो पता चलता है कि जब भी 30 प्रतिशत से कम नामांकन वापस लिए गए तब सत्ताधारी दल को नुकसान पहुंचा है। आइए समझते हैं कैसा रहा नामांकन का ट्रेंड

2003 में दिखा असर

बीस साल पहले 2003 में हुए चुनाव से पहले प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। 2003 में 3057 नामांकन पर्चे भरे गए थे। नाम वापसी की तारीख के बाद 2171 उम्मीदवार मैदान में थे। यानी करीब 29 प्रतिशत नामांकन पर्चे वापस लिए गए। इसे यूं भी कह सकते हैं कि 71 प्रतिशत उम्मीदवार मतदान में डटे रहे। जब परिणाम आए तो कांग्रेस की सरकार बदल गई और भाजपा सत्ता में आ गई।

2008 और 2013 में नहीं बदली सत्ता

बात करें 2008 के चुनावों की तो इस चुनाव में 4576 नामांकन भरे गए। नाम वापसी और संवीक्षा के बाद 3179 प्रत्याशी बचे थे। मतलब करीब 69 प्रतिशत प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। यानी 30 प्रतिशत से ज्यादा नामांकन वापस ले लिए गए। नतीजे में भाजपा की सत्ता कायम रही। वहीं 2013 में भी लगभग ऐसी ही स्थिति रही। 2013 में 3741 नामांकन दाखिल किए गए थे. इसमें से 2483 उम्मीदवार आखिरी वक्त तक मैदान में थे। यहां भी करीब 69 प्रतिशत उम्मीदवार डटे रहे। 30 फीसदी से अधिक नामांकन वापस खींच लिए गए। इस बार भी भाजपा ही सत्ता पर काबिज रही थी।  

2018 में फिर दिखा असर

2018 के चुनाव में फिर नामांकन के आंकड़े भी 2003 जैसे दिखे। इस इलेक्शन में 3948 नामांकन भरे गए थे, निर्धारित समय के बाद 2899 उम्मीदवार किला लड़ाने के लिए मैदान में थे। यानी 73 प्रतिशत उम्मीदवार मतदान तक पहुंचे। इस बार भी सिर्फ 27 प्रतिशत नामांकन वापस लिए गए। यानी सत्ता को नुकसान पहुंचाने वाले आंकड़े। परिणाम जब आए तो सरकार बदल गई। उठापटक के बाद ही सही कांग्रेस ने सरकार बना ली। हालांकि ये सरकार 15 महीने ही चल सकी।  

 



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