शहर की प्रतिमाओं के विसर्जन लिए राजघाट पुल के पास के तीन पोखरे बनाए गए। बुधवार की दोपहर यही कोई दो बजने वाला था। पोखरों में पटी प्रतिमाओं से साड़ी, गहने, लकड़ी सहित अन्य सामान निकालने की होड़ मची थी। इसी दौरान पिकअप पर प्रतिमा लेकर नाचते गाते युवक पहुंचे। एक विशेष पूजा समिति के पोशाक में आने वाले युवकों का पूजापाठ से ज्यादा जोर नाचने-गाने पर था। तभी अचानक एनाउंस हुआ…जिन्हें नाचना है आकर नाच लें। फिर एक साल बाद ही मौका मिलेगा। फिर क्या था। दो मिनट में आरती, पूजापाठ की औपचारिकता निपटाकर सभी नाचने-गाने में जुट गए। करीब आधे घंटे के बाद प्रतिमा को घाट पर ले गए। वहां बने प्लेटफार्म से सीधे पोखरे में गिरा दिया।
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घाट पर प्रतिमाओं और कलश सहित अन्य पूजन सामग्री को लूटने की होड़ मची रही। प्रतिमाओं की साजोसामान और नथिया निकालने के लिए एक-दूसरे से जूझते देखे गए। इस रुपये की तलाश भी होती रही। अमरूतानी के लिए नागेश्वर ने बताया कि लोग प्रतिमा में सोने की नथिया पहनाते हैं। इस उम्मीद में बच्चों से लेकर बड़े पोखरे और नदी में गोता लगाते हैं। इस दौरान दो बच्चों में रुपये के बंटवारे को लेकर मारपीट शुरू हो गई। पता चला कि 15 रुपये मिले थे। लेकिन एक ने दूसरे को सिर्फ दो रुपये ही दिए।
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विसर्जन स्थल पर नगर निगम की जेसीबी और अवशेष उठाने के लिए गाड़ियां लगी रहीं। पोखरे के भरने पर जेसीबी से लकड़ी सहित अन्य सामान निकालकर बाहर रखा जा रहा था। बाहर निकालते ही सामान बीनने वाले टूट पड़े। कुछ बेचने की तैयारी में थे तो कुछ घरों में उपयोग के लिए। कलश इकट्ठा कर रहे अमरूद मंडी के किबुल इस्लाम ने बताया कि वह रात से करीब तीन सौ कलश निकाल चुके हैं। इसे वह 10 रुपये में बेच देंगे। वस्त्र बटोर रही बहरामपुर की मेवाती ने कहा कि साफ सुथरेे कपड़े हैं। इसका इस्तेमाल तकिये के खोल ओर ओढ़ना बनाने में करेंगी। कुछ महिलाएं और बच्चे बांस सहित ढांचा का अन्य सामान ले जाते नजर आए।
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