
मध्य प्रदेश के मध्य क्षेत्र में दो संभाग में आठ जिले आते हैं
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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस में कड़ा मुकाबला होने के आसार हैं। प्रदेश के मध्य क्षेत्र में कांग्रेस के सामने चुनौती ज्यादा है। भाजपा का गढ़ माने जाने वाले मध्य क्षेत्र में कांग्रेस पिछले चार चुनावों में से सिर्फ 2018 में ही यहां दहाई का आंकड़ा पार कर पाई, लेकिन फिर भी उसने भाजपा से आधी सीटें ही जीतीं। कांग्रेस के सामने अपने प्रदर्शन को बेहतर करने और भाजपा के सामने दोहराने की होगी।
मध्य क्षेत्र में भोपाल और नर्मदापुरम संभाग आते हैं। दोनों ही संभाग में आठ जिले भोपाल, विदिशा, सीहोर, रायसेन, राजगढ़, नर्मदापुरम, हरदा, बैतूल आते हैं। यहां पर 36 विधानसभा सीटें हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 24 और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती। राजधानी भोपाल की सात सीटों में से चार भाजपा और तीन कांग्रेस ने जीती। यहां पर दो सीटें उत्तर और मध्य मुस्लिम बाहुल्य है। इसका असर भोपाल की लोकसभा सीट पर भी असर करता है। नर्मदापुरम, बैतूल और हरदा में मुद्दों के आधार पर बनी लहर और प्रत्याशी के चेहरे पर वोट डलते हैं। राजगढ़, विदिशा और रायसेन हिंदू महासभा का गढ़ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा में काफी समय बिताया। मध्य क्षेत्र की सीट पर वोटों का ध्रुवीकरण जीत और हार तय करता है। इसका फायदा भाजपा को मिलता है।
शिवराज का पैतृक गांव भी इसी क्षेत्र में
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का पैतृक गांव जैत सीहोर जिले के बुधनी विधानसभा क्षेत्र में आता है। शिवराज ने 1990 में पहली बार बुधनी से ही विधानसभा चुनाव लड़ा था। विदिशा से शिवराज की राजनीति आगे बढ़ी। शिवराज सिंह नवंबर 2005 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद से अभी लगातार करीब 19 साल से मुख्यमंत्री हैं।
बैतूल सीट जो जीता उसकी बनी सरकार
बैतूल जिले की बैतूल सीट अभी कांग्रेस के कब्जे में है। 1967 से सीट को लेकर मिथक है, जिस पार्टी का विधायक यह सीट जीतता है, उसकी ही प्रदेश में सरकार बनी है। हालांकि,1980 में एक बार यह मिथक टूटा था, जब भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी की विजय हुई और कांग्रेस की सरकार बनी।
गोविंदपुरा सीट 1977 से भाजपा नहीं हारी
भोपाल की गोविंदपुरा सीट पर लंबे समय से भाजपा का कब्जा है। यहां पर भाजपा 1977 से चुनाव जीतती आ रही है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बाबूलाल गौर चुनाव लड़ते थे। अब उनकी बहू कृष्णा गौर विधायक है। यह सीट 1967 बनी। 1967 और 1972 में दो बार कांग्रेस इस सीट पर जीत, लेकिन उसके बाद कभी कांग्रेस को जीत नहीं मिली।
2018 में आठ जिले और 36 विधानसभा सीटों की स्थिति
भोपाल सात सीटें- चार भाजपा और तीन कांग्रेस
विदिशा पांच सीटें- चार भाजपा और एक कांग्रेस
रायसेन चार सीटें- तीन भाजपा और एक कांग्रेस
सीहोर चार सीटें- चारों सीटें भाजपा के पास
राजगढ़ पांच सीटें- दो भाजपा और तीन कांग्रेस
नर्मदापुम चार सीटें- चारों सीटें भाजपा के पास
हरदा- दो सीटें- दोनों सीटें भाजपा के पास
बैतूल- पांच सीट- चार कांग्रेस और एक भाजपा
पिछले चार चुनाव में कौन कितनी सीटें जीता
2018- भाजपा 24, कांग्रेस 12
2013- भाजपा 29, कांग्रेस 5, निर्दलीय 1
2008- भाजपा 27, कांग्रेस 8, निर्दलीय 1
2003- भाजपा 29, कांग्रेस 6, निर्दलीय 1