Corporation's encroachment on drains and not storm water lines on 60 percent of the roads, hence water logging

दूसरे दिन में शहर में इस तरह जलजमाव रहा।
– फोटो : amar ujala digital

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इंदौर शहर आपदा प्रबंधन के हिसाब से ठीक से डिजाइन नहीं है। रविवार दोपहर पानी थमने के नदियों का जलस्तर तो कम हो गया था, लेकिन उसके आसपास जलजमाव था। बारिश होने के बाद इंदौर में जलजमाव को खत्म होने में चार से पांच घंटे लगते है, जबकि कई शहरों में दो से तीन घंटों में शहर सामान्य हो जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इंदौर की साठ प्रतिशत सड़कों पर स्टाॅर्म वाॅटर लाइन ही नहीं है। इस तरह की सड़कें ज्यादातर मध्य क्षेत्र में है, इसलिए जमजमाव की ज्यादा समस्या उस हिस्से में है।

निगम ने कर लिया नालों पर अतिक्रमण

हर शहर का एक प्राकृतिक बहाव होता है। इंदौर में 30 से ज्यादा छोटे-बड़े नाले और एक कान्ह नदी है। जिसमें बारिश का पानी छोटे नालों से बहकर मिलता है, लेकिन उसका प्राकृतिक बहाव ही अवरुद्ध है। रविवार सुबह 10 बजे रामबाग ब्रिज से चार फीट नीचे पानी बह रहा था, लेकिन नगर निगम चौराहे पर डेढ़ से दो फीट पानी भरा हुआ था,क्योकि नदी पर ही नगर निगम ने 100 से ज्यादा दुकानों का मार्केट बना दिया है।

नदी के दूसरे हिस्से में मछली मार्केट बना हुआ है। इस वजह से यहां पानी भरा रहता है। मास्टर प्लान विशेषज्ञ जयवंत होलकर का इस बारे में कहना है कि मास्टर प्लान तय है कि नदियों के दोनों तरफ 50 फीट तक कोई निर्माण नहीं हो सकता, लेकिन शहर में नाले किनारे ही सबसे ज्यादा अतिक्रमण है। अहिल्याश्रम, पोलोग्राउंड की तरफ नदी के हिस्से खुले है, वहां कभी जल जमाव नहीं होता।

स्टाॅम वाॅटर लाइन कई सड़कों पर नहीं

शहर के पश्चिम और मध्य हिस्से में ज्यादातर सड़कों पर स्टाॅर्म वाॅटर लाइन नहीं है। इस कारण जलजमाव ज्यादा देर तक रहता है। जवाहर मार्ग, चंदन नगर, बाणगंगा वाले हिस्से में यह समस्या बनी हुई है। पहले मालवा मिल पाटनीपुरा सड़क पर दो से तीन फीट पानी भरता था, लेकिन सड़क चौड़करण के बाद वहां स्टाॅर्म वाॅटल लाइन बिछाई गई,तो अब वहां जलजमाव की समस्या नहीं रहती। स्ट्रक्चरल इंजीनियर अतुल शेठ का कहना है कि स्टाॅर्म वाटर लाइन नहीं होने के कारण हर साल करोड़ों रुपये डामरीकरण पर नगर निगम खर्च करता है,क्योकि जलजमाव से गड्ढे हो जाते है।

 



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