– मुस्लिम समुदाय के हित में कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए थे
संवाद न्यूज एजेंसी
झांसी। जमीयत-ए-उलेमा हिंद और रुय्यत-ए-हिलाल कमेटी के सदर मौलाना आमिल कासमी (62) का बृहस्पतिवार दोपहर को इंतकाल हो गया। उनके इंतकाल की खबर शहर में फैलते ही मस्जिद बिसाती बाजार में लोगों का हुजूम इकट्ठा हो गया। ईदगाह में जनाजे की नमाज अदा करने के बाद उनकी मय्यत को कानपुर देहात के गांव केसी ले जाया गया। जहां उनको सुपुर्द-ए-खाक किया गया। मौलाना आमिल ने मुस्लिम समुदाय के हित के लिए उन्होंने तमाम ऐतिहासिक फैसले सुनाए।
मूल रूप से कानपुर देहात के गांव केसी के रहने वाले मौलाना आमिल कासमी की शुरुआती इस्लामिक पढ़ाई देवबंद मदरसे में हुई थी। हाफिज और आमिल की पढ़ाई पूरी होने के बाद सन 1983 में उन्हें मस्जिद बिसाती बाजार स्थित मदरसा इस्लामियां तालिमुल कुरान की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। मदरसे के बच्चों को कुरान और दीनी तालीम देने के साथ ही उन्होंने मस्जिद की इमामत भी शुरू कर दी थी। अपने व्यवहार और काबलियत से उन्होंने झांसी के मुस्लिम समुदाय में एक खास पहचान बनाई। इसके साथ ही तकरीबन 40 साल में उन्होंने पांच सौ से अधिक लोगों को कुरान हिफ्ज कराया। पिछले दो महीने से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था। निजी अस्पताल में इलाज के दौरान उनका इंतकाल हो गया। मुफ्ती साबिर कासमी ने कहा कि मौलाना आमिल मेरे उस्ताद होने के साथ ही बुंदेलखंड के काबिल उलमाओं में शुमार थे। कई ऐतिहासिक फैसल करने वाले हमारे बीच नहीं रहे हैं। इनकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती है। उनके बड़े बेटे मुफ्ती आरिफ नदवी भी शहर की जानीमानी शख्सियत हैं।
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1992 के दंगों के दौरान कायम कराई थी शांति
बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान सन 1992 जब देश दंगों की आंच में झुलस रहा था। तब झांसी जिले के पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के माथे पर भी चिंता की लकीरें उभर आईं थी। प्रशासनिक अफसरों को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। तब अफसरों ने मस्जिद बिसाती बाजार की ओर रुख करते हुए मौलाना आमिल से बातचीत की थी। मौलाना आमिल ने भी तुरंत ही फरमान जारी करते हुए मुस्लिमों से शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील की। जिसका असर शहर में दिखाई भी दिया। इसके अलावा सांप्रदायिक विवादों में भी मौलाना को बुलाया जाता था।
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पेचीदा मामलों को हल करने थे माहिर
मुस्लिम समाज के लोगों के बीच किसी भी किस्म का विवाद हो तो मौलाना आमिल कासमी के दरबार में हाजिरी लगाई जाती थी। मौलाना भी इत्मीनान से पक्षों की बात सुनने के बाद इस तरह का फैसला सुनाते थे कि दोनों ही पक्ष मुतमइन होकर फैसले का इस्तकबाल करते थे। कई ऐसे पेचीदा मामलों काे हल कर उन्होंने कई बार विवाद खत्म कराए।