शिक्षक दिवस पर विशेष

– अब सातों जनपदों के छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण करते, क्षेत्र का पहला डिग्री कॉलेज है

अमर उजाला ब्यूरो

झांसी। चंद कमरों से अपना सफर शुरू करने वाला बुंदेलखंड महाविद्यालय कभी टपरा काॅलेज के नाम से जाना जाता था। मगर यहां के शिक्षक प्रो. शेर सिंह कोठारी के प्रयासों ने इसकी तस्वीर बदल दी। उन्होंने शिक्षक, कर्मचारियों की टीम का नेतृत्व करके कॉलेज के निर्माण के लिए चंदा इकट्ठा किया। वह टीम के साथ ट्रेनों में डिब्बे लेकर जाते थे और कॉलेज निर्माण के लिए चंदा मांगते थे। बुंदेलखंड के पहले महाविद्यालय में आज भी सातों जिलों समेत दूरदराज के छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण करने आते हैं।

बुंदेलखंड महाविद्यालय की स्थापना 1949 में हुई थी। तब इस महाविद्यालय को टपरा कॉलेज के नाम से जाना जाता था। बीकेडी में राजनीति विज्ञान के सहायक अध्यापक डॉ. आरबी मौर्य का कहना है कि प्रो. कोठारी की नियुक्ति 19 जुलाई 1950 में बुंदेलखंड महाविद्यालय में बतौर राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक के पद पर हुई थी। वह धारा प्रवाह हिंदी और अंग्रेजी बोलने के साथ ही कई अन्य भारतीय भाषाओं के विद्वान थे।

उनके साथी रहे बीकेडी से सेवानिवृत्त डॉ. विजय गोपाल श्रीवास्तव का कहना है कि प्रो. शेर सिंह कोठारी ने चंदा लेकर कॉलेज की स्थापना की। उन्हीं की बदौलत आज बीकेडी में शानदार इमारत बनी है। करीब तीन दशक तक महाविद्यालय में सेवाएं देने के बाद 54 वर्ष की उम्र में 27 जनवरी 1982 को उनका निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा में झांसी का अपार जनसमूह उमड़ पड़ा था। पूरे झांसी में अभूतपूर्व बंदी थी।

दोबारा खींच लाई थी बुंदेली धरा की खुशबू

डॉ. मौर्य के मुताबिक राजस्थान के अजमेर में चार जनवरी 1928 में जन्मे प्रो. कोठारी पिता के स्थानांतरण के चलते 20 साल की उम्र में परिवार सहित कानपुर आ गए। यहां वीएसएसडी कॉलेज में उन्होंने स्नातक की पढ़ाई की। परास्नातक की शिक्षा सागर विवि से पूरी की। आठ अक्तूबर 1960 को वह बीकेडी में राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष बने। इसके बाद एक सितंबर 1970 से 30 जून 1971 तक रायबरेली में फिरोज गांधी कॉलेज के प्राचार्य भी रहे। मगर बुंदेली धरा की खुशबू उन्हें पुनः बीकेडी की तरफ खींच लाई। एक जुलाई 1971 को वह फिर से बुंदेलखंड कॉलेज में राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष बने। वर्ष 1971 और 1978 में यहां प्राचार्य भी रहे।



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