उरई। रामनगर स्थित आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में बुधवार को श्रावणी उपाकर्म एवं संस्कृत दिवस का कार्यक्रम हुआ। जिसमें सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में जागरण तथा वेद पारायण के साथ दशविधि स्नान, पंचगव्य प्राशन, सप्तर्षि पूजन, जीर्ण यज्ञोपवीत परित्याग पूर्वक नूतन यज्ञोपवीत धारण कराया गया।

विद्यालय के प्राचार्य पूर्णेंद्र मिश्रा ने वैदिक विधि से श्रावणी उपाकर्म को संपादित कराया। प्राचार्य ने कहा कि सनातन परंपरा में श्रावण मास की पूर्णिमा पर मनाए जाने वाले श्रावणी उपाकर्म का बहुत महत्व माना गया है, क्योंकि महापर्व का संबंध उस पवित्र ब्रह्मसूत्र से है। जिसके तीन धागे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक माने जाते हैं। हिंदू धर्म में ब्राह्मण समाज से जुड़े लोगों में यज्ञोपवीत या फिर कहें जनेऊ अनिवार्य माना गया है।

श्रावणी उपाकर्म को अपने गुरुजी के सानिध्य में तथा वैदिक और शास्त्रीय विधि से इसका अनुष्ठान करने से वर्ष भर में किए गए अपूज्य पूजन, अभक्ष्य भक्षण, अश्रवण श्रवण, मानसिक आदि पापों का उपशमन हो जाता है। इस पर्व पर हिंदू धर्म से जुड़े सभी समाज के लोग पूरे विधि-विधान से अपने यज्ञोपवीत को बदलते हैं। उत्तर भारत में इस पर्व को जहां श्रावणी उपाकर्म के नाम से जाना जाता है तो वहीं दक्षिण भारत में यह अवित्तम के नाम मनाया जाता है। श्रावणी उपाकर्म के दिन पूरे विधि-विधान से पुराने यज्ञोपवीत उतारकर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। इस दौरान प्रदीप माहेश्वरी, महेश गौतम, शिवविशाल चतुर्वेदी, लक्ष्मीनारायण द्विवेदी, रोहित चतुर्वेदी, प्रभात द्विवेदी, हृषिकेश त्रिपाठी, मोहित मिश्रा, कपिल शास्त्री आदि मौजूद रहे।



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