झांसी में राज्य स्तर पर खेल रहे बच्चे अभाव में कर रहे गुजर-बसर, एक गिलास दूध भी मुश्किल से हो रहा नसीब
खेल दिवस पर विशेष
किस्त-4
अनीता वर्मा
झांसी। मेजर ध्यानचंद की कर्मभूमि में छोटे-छोटे बच्चों में भी कूट-कूटकर प्रतिभा भरी हुई है। इन्हें जरूरत है तो बस एक सहारे की, क्योंकि दो वक्त की रोटी के लिए जब इनकी आंखें मां-बाप को दिनभर खेतों में मजदूरी कर हल चलाते देखती हैं तो उनके हाथों में पड़े मेहनत के छाले, इनके खेल के जुनून को और बढ़ा देते हैं। ये हर रोज भोर होते ही खेतों में दौड़ते हैं। इन्हें भले ही हफ्तों तक एक गिलास दूध भी नसीब न हो लेकिन ये बच्चे जिला और राज्य स्तर पर कई मेडल जीत चुके हैं। इनमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तक पहुंचने का जज्बा भी है। जनपद में रंजीत कुमार, राखी और नैंसी जैसे हजारों बच्चे हैं जो खेल जगत में शहर और देश का मान बढ़ा सकते हैं। इनका कहना है कि इन्हें जरूरत है तो बस चंद सुविधाओं की…।
एक गिलास दूध भी कभी-कभी नसीब होता है : रंजीत
झांसी। एथलीट रंजीत कुमार राज्य स्तर पर कई बार अपना दम दिखाकर मेडल पा चुके हैं। लेकिन, इन्हें एक गिलास दूध भी मुश्किल से कभी-कभी ही नसीब होता है। मऊरानीपुर की नई बस्ती में रहने वाले रंजीत बताते हैं कि उनके पापा विनोद कुमार और मां सुनीता देवी मजदूरी करते हैं। घर में वह 10वीं में बड़ा भाई अजीत 12वीं में और छोटी बहन रक्षा 8वीं में पढ़ते हैं। उसे एथलेटिक्स का शौक बचपन से है इसलिए वह खेतों और कच्ची सड़क पर ही दौड़कर प्रैक्टिस करता है। रंजीत का कहना है कि अच्छी सुविधाएं मिलें तो वह आगे बढ़ सकता है। लेकिन, परिवार के हालात से किसी तरह खाना और पढ़ाई पूरी हो रही। खेल के लिए अच्छी डाइट मिलना तक मुश्किल है। ब्यूरो
खेतों में मजदूरी करते है मम्मी-पापा, तब जलता है चूल्हा : राखी
झांसी। खंदरका गांव इटायल की राखी पाल बेहतरीन एथलीट (आठ सौ मीटर) हैं। इन्हें बड़ा मौका मिले तो खेल जगत में झांसी का नाम रोशन कर सकती हैं। लेकिन, आर्थिक तंगी के आगे इनके सपने कई बार टूट जाते हैं। राखी के पिता राकेश पाल और मां बबली पाल दोनों ही गांव में खेतों पर मजदूरी करते हैं। राज्य स्तर पर जहां तीन-चार बार खेल चुकी राखी इंटरमीडिएट के बाद नेशनल की तैयारी कर रहीं हैं, वहीं इनकी छोटी बहन 10वीं और भाई 5वीं में पढ़ रहे हैं। राखी बताती है कि मम्मी-पापा दिन रात जी तोड़ मेहनत करके मुश्किल से फीस जमा कर पाते हैं। उनकी मेहनत से ही दो वक्त चूल्हा जलता है। छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी उधार लेना पड़ता है, जिसे पापा ब्याज सहित चुकाते हैं। ब्यूरो
किसी तरह पढ़ाई और गृहस्थी चला रहे हैं पापा : नैंसी
झांसी। एथलीट नैंसी श्रीवास अपने पापा की लाडली हैं। वह पढ़ाई के साथ-साथ जिला और राज्य स्तर पर कई मेडल पा चुकी हैं। इनके पापा सुरेश श्रीवास मऊरानीपुर कस्बे में एक गैस एजेंसी में सिलिंडर डिलिवरी का प्राइवेट काम करते हैं। परिवार में एक बड़ा भाई है, वह भी अभी पढ़ाई कर रहा है। इनके पापा का कहना है कि उनकी कमाई बहुत कम है। जब किसी बड़े खर्च की जरूरत पड़ती है तो सिलिंडर पहुंचाने का काम ज्यादा कर लेते हैं, इससे किसी तरह बच्चों की पढ़ाई और गृहस्थी चल रही है। नैंसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलना चाहती है। नैंसी बताती है कि वह हर रोज प्रैक्टिस करती है। उसे अपनी मां रजनी श्रीवास और पापा व भाई का सपना पूरा करना है। ब्यूरो
कक्षा छह के हैं छात्र, जीत चुके हैं कई गोल्ड मेडल : सम्राट
झांसी। कहते हैं कि मेधा की कोई उम्र नहीं होती, वह बचपन से ही झलकने लगती है। ऐसी ही एक मेधा का नाम है सम्राट सिंह। मऊरानीपुर में कक्षा छह के छात्र सम्राट एथलेटिक्स में राज्य स्तर पर खेल चुके हैं। इन्होंने गोल्ड मेडल भी जीते हैं। स्कूल और जिला स्तर पर तो सभी इनके हुनर के कायल हैं। सम्राट की बड़ी बहन 12वीं की छात्रा हैं। इनके पापा बृजमोहन सिंह ऑनलाइन और ऑफलाइन कोचिंग पढ़ाते हैं। इनकी मां आरती सिंह का पूरा ध्यान बच्चे के कॅरिअर पर है। सम्राट और इनके पापा बताते हैं कि पढ़ाई के साथ-साथ वह अपनी प्रैक्टिस जारी रखते हैं, उन्हें मेडल पाने का बहुत शौक है। सम्राट पढ़ाई में भी काफी अच्छे हैं।