
बैठक में सभी ने अपने विचार रखे।
– फोटो : अमर उजाला, इंदौर
विस्तार
नशा एक आदत नहीं, लत है और यह पूरे समाज के लिए घातक है। अत: इसका समाधान जरूरी है, नहीं तो यह पूरी युवा पीढ़ी को तबाह कर देगा। इसलिए हम युवाओं के साथ संवाद करें। शिक्षण संस्थाओं में जाकर स्टूडेंट्स को नशे के दुष्प्रभावों पर आधारित बुकलेट का वितरण कर 10-10 मिनट की फिल्म दिखाने के साथ जागरूकता अभियान चलाएं। 15 से 30 वर्ष तक के युवाओं को इंगेज करने के लिए अधिक से अधिक खेल के मैदान बनाए। ड्रग पैडलरों के खिलाफ सख्ती बरतें। नशा करने वालों को हैयदृष्टि के बजाय पीड़ित मानकर उन्हें इसके दुष्परिणाम के बारे में बताएं। उक्त विचार संस्था सेवा सुरभि और इंदौर प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में ‘आइए! इंदौर को बनाएं सुरक्षित और नशामुक्त’ विषय पर रविवार को आयोजित विचार गोष्ठी में प्रबुद्धजनों, प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों द्वारा व्यक्त किए गए।
नशे के खिलाफ एक्शन प्लान जरूरी- ताई
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन (ताई) ने कहा कि नशे के बहुत ही घातक परिणाम होते हैं। अत: हमें ठोस कदम उठाने की जरूरत है। पुलिस प्रशासन का भय जरूरी है। साथ ही वह एक्शन भी लें। स्कूल, कॉलेज के साथ ही कोचिंग क्लासेस और होस्टलों में अध्ययनरत बच्चों के बीच सामाजिक संगठन के सदस्यों को लगातार जाना चाहिए। इस शहर के लिए मैं क्या कर सकता हूं यह जरूरी है। विभिन्न स्तरों पर एक्शन प्लान बनाए जाएं।
बुकलेट और फिल्म के माध्यम से जागरूक करें – महापौर
महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि नशे के खिलाफ गली-गली में नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जाए। ऐसी बुकलेट बनाई जाएं, जिसमें नशे के घातक परिणामों का उल्लेख हो। नशे के खिलाफ जागरूकता के लिए 10-10 मिनट की फिल्में बनाकर लोगों और विशेषकर स्टूडेंट्स को जागरूक किया जाए। ड्रग पैडलर की चैन को तोड़ना बहुत जरूरी है। उज्जैन और मंदसौर से जो नशा आ रहा है उसे रोका जाए। कानून में जो पेचिदगियां हैं उन्हें भी दूर किया जाना चाहिए, ताकि ड्रग पैडलर को सख्त सजा मिल सके।
नशा करने वालों को हम हैय पीड़ित समझें – पुलिस कमिश्नर
पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर ने कहा कि जो नशा करने वाले हैं वे अपनी तड़प को पूरा करने के लिए दर्द निवारक दवा आयोडेक्स को खा रहे हैं और वहीं पेट्रोल को कपड़े में डालकर सूंघते हैं। नशा एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है। नशेबाज को हम हैयदृष्टि से नहीं देखें, इसे हम पीड़ित मानें। शहर में अनुमानित 10 से 15 हजार ड्रग एडिक्ट हैं, जो नियमित नशा करते हैं। इसे हर हालत में कम करना बहुत जरूरी है। ऐसे लोगों को पुलिस कस्टडी में रखना भी मुश्किल है। सिनेमाघरों में फिल्म के पहले नशे के दुष्परिणामों को लेकर डाक्यूमेंट्री भी दिखाई जा रही है। इसका असर समाज पर हो रहा है। उन्होंने कहा कि समाज में अपराध घटते बढ़ते नहीं है, बस उनका स्वरूप बदलता है। आज साइबर क्राइम, डोमेस्टिक बायलेंस, धोखाधड़ी जैसे कई नए अपराध हो रहे हैं।
नशामुक्ति केंद्र बनाएं और इसका ब्लू प्रिंट बनाएं – कलेक्टर
कलेक्टर डॉ. इलैया राजा टी ने कहा कि नशा एक ग्लोबल फिनोमिना है। यह समस्या किसी एक शहर या देश की न होकर संपूर्ण विश्व की है। हम नई पीढ़ी को समझने में भूल कर रहे हैं। लक्षण कुछ है और बीमारी कुछ है। हम लक्षण को देखकर इलाज कर रहे हैं, इसलिए बीमारी बनी हुई है। 15 से 30 वर्ष के जो बच्चे हैं, उनको इंगेज करने के लिए हमारे पास न अच्छे खेल के मैदान हैं और न कोई अन्य साधन। इन बच्चों से बात करने वाले लोगों की भी कमी है। नशा केवल लिकर तक सीमित नहीं है, इसमें कई तरह के ड्रग भी शामिल हैं, जो हमारी नई युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहे हैं। देश में स्किल्ड युवाओं की संख्या कम हो जाएगी। आवश्यकता इस बात की है कि हम अधिक से अधिक नशामुक्ति केंद्र बनाएं और इसका एक ब्लू प्रिंट तैयार करें। जो युवा नशा कर रहे हैं, उन्हें भी हम बहस में शामिल करें। उनकी बातों को सुनें कि वे किस वजह से नशा कर रहे हैं।