
अक्रूरेश्वर महादेव मंदिर
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
अक्रूरेश्वर महादेव एक ऐसे देव हैं, जिनके दर्शन करने मात्र से ही क्रूरता दूर हो जाती है और भक्तों की बुद्धि निर्मल होती है। मंदिर के पुजारी पंडित नितेश मेहता के अनुसार श्री अक्रूरेश्वर महादेव का शिवलिंग स्वयं भू हैं, जिन्होंने अपने एक भक्त को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उसे अर्धनारीश्वर के स्वरूप में दर्शन दिए थे।
उज्जैन में अंकपात मार्ग स्थित राम जनार्दन मंदिर के सामने एवं विष्णु सागर के पास श्री अक्रूरेश्वर महादेव का अतिप्राचीन मंदिर है। जहां भगवान का शिवलिंग परमारकालीन होने के साथ ही काले पाषाण का बना हुआ है। जो कि चोकोर जलाधारी में स्थित है। मंदिर में भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती, श्री गणेश, कार्तिकेय और नंदी जी के साथ अन्य प्रतिमाएं भी विराजमान हैं।
मंदिर के पुजारी पंडित नितेश मेहता बताते हैं कि यह एक मात्र अर्धनारीश्वर का ऐसा शिवलिंग है, जहां भगवान श्री कृष्ण, ब्रह्मा जी, शिव के गण भृगिरिटी की कथाओं का वर्णन देखने को मिलता है। श्री अक्रूरेश्वर महादेव की कथा बताती है कि एक बार जब माता पार्वती ने शक्ति का रूप धारण किया तो सभी ने उन्हें नमस्कार किया और उनकी स्तुति की, लेकिन भगवान शिव के गण भृगिरीटि ने न तो माता को नमस्कार नहीं किया और न ही उनकी स्तुति की। शिव गण की इस भूल पर पहले तो माता पार्वती ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन फिर भी जब गण नहीं माना तो मां पार्वती नाराज हो गईं और उन्होंने भगवान शिव के इस गण को पृथ्वी लोक में रहकर अनेकों प्रकार के दंड भुगतने का श्राप दे दिया।
इस श्राप के प्रतिफल में भृगिरीटि पृथ्वी लोक पर गिर पड़ा। जब भगवान शिव को अपने गण भृंगिरीट को मिले श्राप की जानकारी मिली तो उन्होंने तुरंत अपने गण को इस श्राप से मुक्ति के लिए माता पार्वती की आराधना करने को कहा, जिससे माता प्रसन्न तो हो गई लेकिन उन्होंने गण को महाकाल वन में जाकर एक दिव्य शिवलिंग का पूजन-अर्चन करने को कहा जिससे कि गण की क्रूरता समाप्त होने के साथ ही उसे सद्बुद्धि भी प्राप्त होगी। गण भृगिरीटि माता पार्वती द्वारा बताए गए उपाय को मानते हुए महाकाल वन पहुंचा, जहां इसी शिवलिंग का पूजन-अर्चन करने के फलस्वरूप शिवलिंग से अर्धनारीश्वर के रूप में शिव पार्वती प्रकट हुए।
इन दिव्य दर्शन के बाद भृगिरीटि का दिव्य लिंग अक्रूरेश्वर (अक्रूरेश्वर यानी बुद्धि को सौम्य करने वाले) कहलाया। भृगिरीटि ने भगवान शिव और माता पार्वती से यह वरदान मांगा था कि जिस शिवलिंग के दर्शन से उसकी सुबुद्धि हो गई। वह शिवलिंग अक्रूरेश्वर के नाम से विख्यात हो भगवान शिव व माता पार्वती के आर्शीवाद से यही हुआ। पुजारी पंडित नितेश मेहता ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जो भी मनुष्य शिवलिंग के दर्शन कर पूजन करेगा वह स्वर्ग को प्राप्त होगा। उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। इनके दर्शन पूजन से बुद्धि, सुख-समृद्धि और अंत में शिव लोक प्राप्त होता है।
ब्रह्मा जी की तपस्थली तो कृष्ण-बलराम यही करते थे निवास
यदि स्कंद पुराण के अध्याय 31 और 32 को देखा जाए तो पता चलता है कि उज्जैन में स्थित श्री अक्रूरेश्वर महादेव के मंदिर पर ही ब्रह्मा जी ने वर्षों तक कठोर तपस्या की थी और यहीं से उन्हें सिद्धि भी प्राप्त हुई थी। इसके साथ ही स्कंद पुराण के 33 अध्याय में इस बात का भी उल्लेख है कि इसी तीर्थ के पास भगवान श्री कृष्ण एवं बलराम का निवास भी था। स्कंद पुराण यह भी बताती है कि यमराज को पराजित करने के बाद श्री कृष्ण ने क्षेत्र को अंकपात तीर्थ का नाम दिया था।