
श्री कुक्कुटेश्वर महादेव
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धार्मिक नगरी उज्जैन में एक ऐसा शिव मंदिर है, जिसके बारे में स्कंद पुराण के अवंती खंड में इस बात का उल्लेख है कि यदि यहां सच्चे मन से भगवान के मात्र दर्शन ही कर लिए जाएं तो पितर पशु योनि से मुक्त हो जाते हैं। 84 महादेव में 21वां स्थान रखने वाले श्री कुक्कुटेश्वर महादेव की महिमा अपरंपार है। यह मंदिर रामघाट पर उदासीन अखाड़े के नीचे गंधर्व घाट पर स्थित है। पंडित सचिन गुरु ने बताया कि मंदिर में काले पाषाण का एक अतिप्राचीन शिवलिंग है। जिसके साथ ही माता पार्वती, कार्तिकेय स्वामी, भगवान श्री गणेश के साथ ही नंदी जी की प्रतिमा विराजमान है। वही, मंदिर में दो शंख, चंद्र व सूर्य की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर के पुजारी पंडित सचिन गुरु का कहना है कि ऐसे पितृ जो कि कीट, पतंगा, सर्प, पशु के साथ ही अन्य योनियों में अनेक कष्टों को भुगत रहे हैं। उन्हे इस शिवलिंग के दर्शन करने मात्र से ही इन योनियों से मुक्ति मिल जाती है। मंदिर में वैसे तो वर्ष भर ही अनेक आयोजन होते हैं, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा पर अन्नकूट का आयोजन, निर्जला एकादशी पर खीर प्रसाद का वितरण और शिवरात्रि पर भगवान के श्रृंगार दर्शन जैसे आयोजन प्रमुख हैं, जिनका लाभ धर्मप्रिय जन उठाते हैं।
श्री कुक्कुटेश्वर महादेव की कथा
वर्षों पूर्व एक परम तेजस्वी कौशिक नाम के राजा हुआ करते थे, जिनके राज्य में सभी सुख सुविधाएं होने से जनता काफी खुश थी लेकिन राजा कौशिक के साथ एक बड़ी परेशानी यह थी कि वह दिन में तो मनुष्य की योनि में रहते थे लेकिन रात के समय कुक्कुट (मुर्गे) का रूप धारण कर लेते थे। राजा के कुक्कुट (मुर्गे) का रूप धारण करने के कारण उनकी रानी विशाला काफी परेशान रहती थी। उसे राजा से पति का सुख प्राप्त नहीं हो रहा था, जिसके कारण एक दिन परेशान होकर रानी ने अपनी जान देने का विचार किया और वह इसके लिए गालव ऋषि के पास पहुंच गई, जहां उन्होंने ऋषि से अपने मन की बात कही और उनसे इस समस्या का समाधान मांगा। जिस पर गालव ऋषि ने बताया कि तुम्हारा पति पूर्व जन्म में राजा विदूरत का पुत्र था। जिसने मांसाहारी होने के साथ अनेकों कुक्कुटों का भक्षण किया था। जिसके कारण कुक्कुटों के राजा ताम्रचूड़ ने उसे श्राप दिया कि वह क्षय रोग से पीड़ित होगा। श्राप के कारण राजकुमार कौशिक रात के समय कुक्कुट (मुर्गे) का रूप धारण कर लेता है। जब विशाला ने ऋषि से इस श्राप की मुक्ति का उपाय पूछा तो मुनि ने उन्हें महाकाल वन में स्थित शिवलिंग का पूजन अर्चन करने को कहा जिसका चमत्कार कुछ ऐसा था कि इनका पूजन करने मात्र से ही मनुष्य पशु योनि से मुक्ति प्राप्त कर लेता था। राजा कौशिक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इस शिवलिंग का पूजन अर्चन करने से राजा को कुक्कुट (मुर्गे) की योनि से मुक्ति मिल गई। मान्यता है कि इस मंदिर में पूजन अर्चन करने से ऐसे पितृ जो कि पशु की योनि भुगत रहे हैं उन्हें इस योनि से मुक्ति मिलती है।