धार्मिक नगरी उज्जैन में एक ऐसा शिव मंदिर है, जिसके बारे में अवंती खंड के स्कंद पुराण में उल्लेख है कि यदि इस शिवलिंग का सच्चे मन से पूजन अर्चन किया जाए तो पूजन करने वाला भक्त शिव गणों में शामिल हो जाता है। 84 महादेव में 37वां स्थान रखने वाले श्री शिवेश्वर महादेव की महिमा अत्यंत निराली है, जिनका मंदिर रामजनार्दन मंदिर की सीढ़ी के पास विष्णु सागर पर स्थित है।
मंदिर के पुजारी पंडित योगेश शर्मा बताते हैं कि स्कंद पुराण के अवंती खंड में मंदिर की कथा कुछ यह बताती है कि एक समय महाकाल वन में रिपुंजय नामक राजा राज्य किया करते थे। वे इतने सेवाभावी राजा थे कि उनके शासनकाल में कोई भी दुखी नहीं था, लेकिन यह राजा शिव की नहीं बल्कि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना किया करते थे। इस नगरी में भगवान शिव की पूजा कोई नहीं करता था। एक दिन भगवान शिव ने अपने गणेश नामक गण को उज्जैन भेजा और उन्हें कहा कि महाकाल वन में एक शिवलिंग की स्थापना करो। गण ने वैद्य का रूप धारण किया और इसी नगरी में रहने लगा उसने औषधियों के माध्यम से कई लोगों की असाध्य बीमारियों को भी ठीक कर दिया। धीरे-धीरे उसकी ख्याति इतनी बढ़ने लगी कि राजा रिपुंजय की पत्नी बहुला देवी ने पुत्र ना होने कि अपनी समस्या को भगवान शिव के गण जो कि वैद्य के रूप में इस नगरी में रह रहे थे। उन्हें बताया लेकिन वैद्य ने राजा की आज्ञा के बिना रानी बहुला देवी को इलाज करने से मना कर दिया। जिस समय राजा और रानी वैद्य के सामने उपस्थित हुए उसी समय वह गण अंतर्ध्यान हो गए और उनके स्थान पर एक शिवलिंग का निर्माण हो गया।
राजा रानी ने इसी शिवलिंग का पूजन-अर्चन किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि राजन तुम्हारे यहां पुत्र होगा। क्योंकि यह शिवलिंग शिव के गण के रूप में था इसीलिए इसका नाम शिवेश्वर के रूप में विख्यात हुआ। कथा यह भी बताती है कि शिवेश्वर पुत्र प्रद लिंग है, इसकी अर्चना से शिव गण का पद प्राप्त होता है। मंदिर के पुजारी पंडित योगेश शर्मा बताते हैं कि यह शिवलिंग अत्यंत चमत्कारी है। मंदिर का गर्भग्रह तो छोटा है लेकिन मंदिर में भगवान शिवेश्वर की विशालकाय प्रतिमा है। मंदिर में भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी जी की प्रतिमा भी है। यहां सभी त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं और विशेष अवसरों पर भगवान का श्रृंगार भी किया जाता है।