धार्मिक नगरी उज्जैन में एक ऐसा दिव्य और अलौकिक शिवलिंग है जिसका पूजन अर्चन और दर्शन करने मात्र से मनुष्य को ब्रह्म व कृष्ण लोक की प्राप्ति होती है। यह मंदिर अत्यंत दिव्य व चमत्कारी है, जिसके बारे में कथा बताती है कि इस शिवलिंग से ऐसे जल की प्राप्ति हुई थी जिसके कारण दैत्यराज पुलोमा का वध हुआ था और इस संसार को पुलोमा के आतंक से मुक्ति मिली थी। मंदिर की पुजारी माधुरी उपाध्याय के अनुसार 84 महादेव में 65वां स्थान रखने वाले श्री ब्रह्मेश्वर महादेव का मंदिर खटीकवाड़ा में स्थित है। मंदिर में भगवान का काले पाषाण का शिवलिंग है। साथ ही मां पार्वती, भगवान श्री गणेश, कार्तिकेय स्वामी के साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की दिव्य प्रतिमा विराजमान है, जो कि काले पाषाण की ही बनी हुई है।
अब तक आपने जितने भी शिव मंदिरों के दर्शन किए होंगे वहां आपको भगवान के शिवलिंग से बाहर की ओर कुछ दूरी पर नंदी जी विराजमान दिखाई दिए होंगे। लेकिन यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर भगवान की जलाधारी के पास ही आपको नंदी जी विराजमान दिखाई देंगे।
पुजारी माधुरी उपाध्याय ने बताया कि वैसे तो ब्रह्मेश्वर महादेव का पूजन अर्चन और दर्शन करने से समस्त संकटों का नाश होता है, लेकिन एकादशी को इनका पूजन अर्चन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मंदिर में वर्ष भर विभिन्न आयोजन किए जाते हैं, लेकिन अधिक मास और श्रावण मास के साथ ही शिवरात्रि पर मंदिर में नौ दिनों तक शिव नवरात्रि उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
ब्रह्मेश्वर महादेव के जल से हुआ था दैत्यराज पुलोमा का वध
स्कंद पुराण के अवंतीखंड में श्री ब्रह्मेश्वर महादेव की जो कथा है वह यह बताती है कि वर्षों पूर्व एक दैत्य पुलोमा हुआ करता था। जिसका आतंक कुछ इतना था कि उसने एक दिन विष्णु लोक में पहुंचकर भगवान विष्णु का वध करने का मन बनाया था। वह विष्णु लोक पहुंचा तो उसने भगवान विष्णु के नाभी कमल पर स्थित ब्रह्मा जी को देखा और सबसे पहले उनका वध करने का प्रयास किया। जब भगवान विष्णु ने दैत्य पुलोमा को ऐसा करते देखा तो उन्होंने तुरंत ब्रह्मा जी से इस दैत्य का वध करने के लिए आदेश दिया और यह भी बताया कि इस दैत्य का वध महाकाल वन में स्थित श्री ब्रह्मेश्वर महादेव का पूजन अर्चन करने और उनसे तपस्या के रूप में मिले जल के कारण होगा। ब्रह्मा जी ने विष्णु जी के कहे अनुसार ब्रह्मेश्वर महादेव की पूजा अर्चना की और जब पूजन अर्चन से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी को वह जल प्रदान किया जिसके कारण दैत्यराज पुलोमा का वध किया जा सका। बताया जाता है कि यह वही शिवलिंग है जहां भगवान श्रीकृष्ण भी पहुंचे थे, जिन्होंने इस शिवलिंग को ब्रह्मेश्वर महादेव का नाम दिया था, जिसके बाद से ही इस मंदिर को ब्रह्मेश्वर महादेव के नाम से पहचाना जाने लगा।