विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में कोटितीर्थ के समीप  श्री चंद्रादित्येश्वर महादेव विराजित हैं। मान्यता है कि इनके दर्शन करने से राहु-केतु और अन्य ग्रह दोषों का नाश हो जाता है। 84 महादेव में 72वां स्थान रखने वाले श्री चंद्रादित्येश्वर महादेव मंदिर की महिमा अत्यंत निराली है, जिनका यदि सच्चे मन से पूजन-अर्चन और दर्शन किए जाएं तो सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ ही मनुष्य स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है।



श्री चंद्रादित्येश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पंडित संजय शर्मा ने बताया कि द्वादश ज्योतिलिंर्गों में से एक श्री महाकालेश्वर मंदिर के कोटितीर्थ के समीप श्री चंद्रादित्येश्वर महादेव का अतिप्राचीन मंदिर स्थित है, जहां भगवान श्री चंद्रादित्येश्वर महादेव की प्रतिमा शिवलिंग के रूप में काले पाषाण की बनी हुई है। मंदिर की दीवार पर माता पार्वती, भगवान विष्णु के साथ ही अन्य देवताओं की प्रतिमा विराजित है। इन प्रतिमाओं के साथ ही मंदिर में आदि शंकराचार्य और मां कामाख्या की प्रतिमा भी है, जो कि अत्यंत चमत्कारी एवं दिव्य बताई जाती है। मंदिर में वैसे तो हर त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन श्रावण मास और अधिक मास में बड़ी संख्या में भक्त भगवान का पूजन-अर्चन और दर्शन करने यहां आते हैं। वहीं, नवरात्रि में मां कामाख्या के पूजन-अर्चन के साथ ही शंकराचार्य जयंती पर भी विशेष आयोजन होते हैं।  


सूर्य और चंद्र ने यहां की थी तपस्या

स्कंद पुराण के अवंती खंड में शिवलिंग के बारे में एक कथा का वर्णन है, जो बताती है कि यह वही शिवलिंग है, जहां चंद्र और सूर्य ने कड़ी तपस्या की थी, जिससे आकाशवाणी हुई और इस शिवलिंग को तभी से श्री चंद्रादित्येश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा। इस अति प्राचीन शिवलिंग की कथा बताती है कि वर्षों पूर्व एक दैत्य शंबरासुर ने देवताओं के साथ युद्ध किया था और युद्ध में स्वर्ग को जीत लिया। शंबरासुर का भय इतना अधिक था कि जब स्वर्ग में उसका राज्य शुरू हुआ तो हारे हुए देवता छुप गए और इधर-उधर भागने लगे, लेकिन चंद्र और सूर्य शंबरासुर के आतंक को लेकर भगवान विष्णु के पास गए और स्तुति करने लगे कि हे भगवान हमें शंबरासुर के आतंक से बचाओ और हमारी जान की रक्षा करो। जिस पर भगवान विष्णु ने चंद्र और सूर्य को यह उपाय बताया कि आप दोनों महाकाल वन में जाओ और यहां उत्तर में स्थित शिवलिंग का पूजन अर्चन करो। तुम्हारी इस तपस्या से भगवान शिव खुश होंगे और शंबरासुर के आतंक से तुम्हें ही नहीं बल्कि सभी देवी देवताओं को मुक्ति मिल जाएगी। सूर्य और चंद्र भगवान विष्णु द्वारा बताए गए उपाय के आधार पर महाकाल वन में पहुंचे और इसी शिवलिंग का पूजन अर्चन किया, जिससे इस शिवलिंग से ज्वाला उत्पन्न हुई थी, जिससे शंबरासुर और उसकी सारी सेना नष्ट हो गई और स्वर्ग पर फिर देवता आसीन हो गए।




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