
संगमेश्वर महादेव मंदिर
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
उज्जैन में हरसिद्धि मंदिर के पीछे चोरियासी महादेव में 69वां स्थान रखने वाले संगमेश्वर महादेव का अतिप्राचीन मंदिर स्थित है। बताया जाता है कि मंदिर में भगवान श्री संगमेश्वर की ऐसा दिव्य शिवलिंग है, जिसमें शिवलिंग के साथ नाग (सर्प) और गौर से देखने पर माता पार्वती की आकृति भी दिखाई देती है।
मंदिर के पुजारी पंडित शैलेंद्र पंड्या ने बताया कि मंदिर में भगवान का काले पाषाण का शिवलिंग अति चमत्कारी है, जिनका पूजन-अर्चन करने से कभी पुत्र, पत्नी, पति के साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों का वियोग नहीं होता है। उन्होंने बताया कि मंदिर में उत्तर दिशा में भगवान श्री गणेश व मां अंबिका की प्रतिमा विराजमान है। जबकि दक्षिण दिशा में दुर्गा माता और पूर्व में पाषाण के शालिग्राम और नंदी जी विराजमान हैं। भगवान की जलाधारी पर सूर्य और चंद्रमा भी बने हुए। पुजारी पंडित शैलेंद्र पंड्या ने बताया कि वैसे तो मंदिर में वर्ष में आने वाले हर त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। लेकिन प्रत्येक माह की चौदस, पूर्णिमा और अमावस्या पर मंदिर में भक्तों के द्वारा अखंड रामायण का पाठ किया जाता है।
संगमेश्वर महादेव के दर्शन करने से राजा सुबाहु को मिला था पुनर्जन्म
भगवान श्री संगमेश्वर की कथा बताती है कि वह कई वर्षों से अपने भक्तों पर कृपा करते आए हैं, उनके दर्शन करने मात्र से ही कलिंग देश के राजा सुबाहु को पुनर्जन्म की प्राप्ति हुई। वैसे तो सुबाहु पूर्व जन्म में काफी अधर्मी थे, लेकिन उन्होंने अंत समय में धर्म को ही श्रेष्ठ माना। इसीलिए भगवान श्री संगमेश्वर के आशीर्वाद से उन्हें मनुष्य की योनि मिली थी। स्कंद पुराण के अवंतीखंड में इस कथा का उल्लेख है कि कलिंग देश में सुबाहु नाम के राजा हुआ करते थे। उनकी पत्नी विशालाक्षी इस बात को लेकर चिंता करती थी की दोपहर के समय राजा सुबाहु के सिर में प्रतिदिन पीड़ा होती थी। कई बार रानी विशालाक्षी ने राजा से इस दुख का कारण पूछा लेकिन बार-बार रानी के यही प्रश्न पूछने से एक दिन राजा सुबह रानी विशालाक्षी को साथ लेकर उज्जैन पहुंचे। जहां उन्होंने राम घाट के समीप स्थित श्री संगमेश्वर महादेव का पूजन अर्चन किया।
रानी ने जब मंदिर के दर्शन करने के बाद राजा से उनके सिर दर्द की पीड़ा के बारे में पूछा तो राजा ने बताया कि पूर्व जन्म में अधर्म के मार्ग पर चलता था। मैंने वेदों की निंदा की कई लोगों के साथ विश्वासघात किया और मेरे अधर्म के मार्ग पर तुम भी मेरा साथ देती रही। यही नहीं हमसे जो पुत्र उत्पन्न हुए वह भी पापी थे। जिन्होंने भी अपने जीवन में सिर्फ अधर्म का मार्ग चुना था। लेकिन अंत समय में मुझे वैराग्य की प्राप्ति हुई और मैंने धर्म का मार्ग चुन लिया। क्योंकि मेरे द्वारा अंत समय में धर्म का मार्ग चुना गया था। इसीलिए इसके बाद के जन्म में मैं शिप्रा जी में मत्स्य बना और तुम कबूतरी। इस जन्म में एक शिकारी ने हम दोनों का शिकार कर लिया था और वह हमें संगमेश्वर महादेव मंदिर के पास से ले गया था, जहां से गुजरते समय हमने श्री संगमेश्वर महादेव के दर्शन किए थे। इसीलिए हमें पुन: मनुष्य के रूप में जन्म मिला।
राजा सुबाहु की यह बात सुनने के बाद दोनों पति पत्नी श्री संगमेश्वर महादेव के शिवलिंग का पूजन-अर्चन करते हुए यहीं रहे और यही उन्होंने श्री संगमेश्वर की भक्ति मे अपने प्राण त्याग दिए। ऐसा बताया जाता है कि अतिप्राचीन श्री संगमेश्वर महादेव के दर्शन करने मात्र से ही समस्त संकटों का नाश हो जाता है और मनुष्य को अपने परिवार से बिछड़ने का अभियोग प्राप्त नहीं होता है।