यदि आप सिर्फ एक मंदिर जाकर सभी तीर्थों का धर्मलाभ अर्जित करना चाहते हैं, तो आप धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित श्री कुंडेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन कीजिए। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन करने मात्र से ही सभी तीर्थों का पूजन अर्चन करने का फल प्राप्त हो जाता है। 84 महादेव में 40वां स्थान रखने वाले श्री कुंडेश्वर महादेव की महिमा अत्यंत निराली है। यह मंदिर अंकपात मार्ग पर भगवान श्री कृष्ण की पाठशाला यानी श्री सांदीपनि आश्रम में स्थित है। मंदिर में भगवान शिव का काले रंग का पाषाण का शिवलिंग स्थित है, जो कि अत्यंत चमत्कारी और दिव्य है।
मंदिर के पुजारी पंडित शैलेंद्र व्यास के अनुसार मंदिर में भगवान श्री कुंडेश्वर महादेव के शिवलिंग के साथ ही वह शिलालेख आज भी स्थित है, जहां बैठकर भगवान श्री कृष्ण, सुदामा और बलराम अध्ययन किया करते थे। इस शिलालेख के साथ ही मंदिर में भगवान धनकुबेर की अति प्राचीन प्रतिमा, भगवान नारायण की मूर्ति, बालाजी की प्रतिमा के साथ ही वामन देव भी विराजमान हैं। मंदिर के शिखर में श्री यंत्र भी इस बात का प्रमाण है कि मंदिर में अगर सच्चे मन से भगवान का पूजन अर्चन किया जाता है, तो सभी संकटों का निवारण होने के साथ ही सर्व मनोकामना भी पूर्ण होती है। मंदिर में वर्ष भर सभी त्यौहारो की धूम रहती है। यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान का पूजन अर्चन और दर्शन करने आते हैं।
गोमती कुंड के जल से शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे श्री कृष्ण
श्री कुंडेश्वर महादेव मंदिर के पास अति प्राचीन गोमती कुंड भी है, जिसके बारे में बताया जाता है कि इस जल से भगवान श्री कृष्ण कुंडेश्वर महादेव का पूजन अर्चन व जलाभिषेक किया करते थे।
दाईं ओर उमा महेश तो बाई ओर है तांत्रिक शिव
श्री कुंडेश्वर महादेव का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है, इसमें दाई और उमा महेश तो बाई और तांत्रिक शिव विराजमान हैं। मंदिर के बाहर खड़े नंदी की प्रतिमा यहां आने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। क्योंकि यह पहली ऐसी प्रतिमा है जिसमें नंदी जी खड़े हुए दिखाई देते हैं। बताया जाता है कि अति प्राचीन इस प्रतिमा पर विक्रम लिखा हुआ है। मंदिर के समीप ही वल्लभाचार्य जी की बैठक भी है।
यहां कुंड को मिली थी श्राप से मुक्ति
श्री कुंडेश्वर महादेव की कथा बताती है कि भगवान शिव के ही गण कुंड को जब माता पार्वती ने श्राप दिया तो इससे मुक्ति पाने के लिए कुंड ने भगवान शिव की आराधना की और इस श्राप से मुक्ति पाई। बताया जाता है कि एक बार भगवान शिव, माता पार्वती के साथ नंदी पर बैठकर महाकाल वन पहुंचे थे। जहां माता पार्वती को अचानक थकान होने लगी जिस पर भगवान शिव ने उन्हें महाकाल वन में ही रुककर उनकी प्रतीक्षा करने को कहा था। इस दौरान भगवान शिव मां पार्वती की रक्षा के लिए यहां पर अपने गण कुंड और नंदी को छोड़ कर गए थे। लेकिन जब कई दिन गुजरने के बाद भी भगवान शिव नहीं लौटे तो माता पार्वती ने कुंड नामक गण को आज्ञा दी कि जाओ और भगवान शिव का पता लगाओ। परंतु कुंड नामक गण ने माता की आज्ञा का पालन इसलिए नहीं किया क्योंकि भगवान शिव ने उसे माता पार्वती की सुरक्षा के लिए यहां तैनात किया था। माता पार्वती के आदेशों की अव्हेलना जब गण ने की तो माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने कुंड को मनुष्य योनि में जाने का श्रााप दे डाला। श्राप देने के बाद जब कुंड ने माता पार्वती से श्राप से मुक्ति के लिए निवेदन किया तो उन्होंने कुंड को उज्जैन में ही स्थित शिवलिंग का पूजन अर्चन करने को कहा था, जिससे कि उन्हें श्राप से मुक्ति मिली। भगवान शिव के गण कुंड ने माता पार्वती द्वारा बताए गए उपाय के आधार पर भगवान की पूजा आराधना की। कुछ दिनों बाद भगवान शंकर विचरण करने के बाद पुन: उज्जैन आए तो उन्हें अपने गण कुंड को दिए गए श्राप की जानकारी लगी। जिस पर भगवान शंकर शिवलिंग से प्रकट हुए और उन्होंने कुंड की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे पुन: मनुष्य की योनि से मुक्त कर पहले की योनि में स्थान देकर अपना गण बना लिया। इस स्थान पर शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए थे और यहां शिव के गण कुंड ने तपस्या की थी इसीलिए यह शिवलिंग कुंडेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।