धार्मिक नगरी उज्जैन में एक ऐसा शिवलिंग है, जिसके दर्शन करने मात्र से सभी श्रद्धालुओं को पापों से मुक्ति मिल जाती है। वहीं, काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के समान फल की प्राप्ति होती है। मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल होकर धर्म लाभ अर्जित करते हैं। 84 महादेव में 78वां स्थान रखने वाले श्री अभिमुक्तेश्वर महादेव की महिमा अत्यंत निराली है। जिनका पूजन अर्चन और दर्शन करने मात्र से ही समस्त कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
मंदिर के पुजारी पंडित मुकेश जोशी के अनुसार यह मंदिर सिंहपुरी क्षेत्र में आताल पाताल भैरव व कुटुंबेश्वर महादेव मंदिर के समीप व्यास जी के बाड़े में स्थित है, जो कि अतिप्राचीन है, मंदिर में काले रंग का पाषाण का शिवलिंग स्थित है, जो कि अत्यंत दिव्य और चमत्कारी है। शिवलिंग की जलाधारी पर दो शंख, सूर्य, चंद्र के साथ ही ओम और स्वस्तिक की आकृति भी बनी हुई है। वहीं, मंदिर में माता पार्वती, कार्तिकेय, श्री गणेश और नंदी जी के साथ विष्णु जी और माता लक्ष्मी की अत्यंत प्राचीन प्रतिमा भी विराजमान हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से श्री अभिमुक्तेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना करता है, वह सर्व पापों से मुक्त हो जाता है। मंदिर में प्रतिदिन भगवान का पूजन अर्चन और अभिषेक तो किया ही जाता है, लेकिन श्रावण व अधिकमास में प्रतिदिन 11 ब्राह्मणों द्वारा रूद्र पाठ के साथ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
रानी लावण्यवती को यहीं मिली थी रोग से मुक्ति
अभिमुक्तेश्वर महादेव की कथा बताती है कि यह देव सर्वमनोकामना पूर्ण करने के साथ ही सभी रोगों का निवारण भी करते हैं। कथा बताती है कि वर्षों पूर्व शाकल नाम के नगर में एक राजा राज्य करते थे जिनका नाम चंद्रसेन था। उनकी एक गुणवान बेटी थी लावण्यावती। लावण्यवती के युवा अवस्था में पहुंचने पर राजा को चिंता हुई और उन्होंने लावण्यवती से पूछा कि बताओ बेटी मैं तुम्हारा विवाह किसके साथ करूं। तो लावण्यवती का कहना था कि पिताजी मुझे पूर्व जन्म की कुछ बातें याद है। जिन्हें मैं भुला नहीं पा रही हूं।
लावण्यावति ने बताया कि पूर्व जन्म में मेरा विवाह प्रागज्योतिषपुर में हर स्वामी के साथ हुआ था लेकिन मेरे अति सुंदर होने के बाद भी पति ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। जिसके कारण मैंने उन्हें वश में करने के लिए कुछ पदार्थ खिला दिया था, जिससे वह मेरे वश में हो गए थे। कुछ समय तक तो वह पति के साथ सुख से रही लेकिन जब उसकी मृत्यु हुई तो वह नरक में चली गई। क्योंकि उसके पाप काफी अधिक थे इसीलिए लावण्यवती ने फिर चांडाल के घर जन्म लिया। लेकिन यहां पिछले जन्मों के पापों के कारण उसे फोड़े हो गए और जानवर काटने लगे तब इन समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए लावण्यवती महाकाल वन में स्थित श्री अभिमुक्तेश्वर महादेव के दर्शन करने पहुंची थी। जहां उनका पूजन अर्चन और दर्शन करने से उसके सभी कष्टों का निवारण हो गया और इन्हीं के दर्शन करने से उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो गई। लावण्यावति ने पिता चंद्रसेन से कहा कि मैं इस जन्म में आपके घर जन्मी हूं। मैं उज्जैन जाकर श्री अभिमुक्तेश्वर महादेव के दर्शन करना चाहती हूं। यह सुनकर राजा चंद्रसेन, रानी और पुत्री लावण्यवती के साथ दर्शन करने पहुंचे जहां लावण्यवती ने इसी शिवलिंग के दर्शन पूजन कर यही देहत्याग कर वह शिव में समाहित हो गई। बताया जाता है कि माता पार्वती ने ही इस शिवलिंग का नाम अभिमुक्तेश्वर रखा था।