
श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव
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पुरुषोत्तम मास में 84 महादेव के पूजन अर्चन का एक विशेष विधान है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन इन दिनों विशेष महत्व रखने वाले इन मंदिरों में पहुंच रहे हैं और भगवान का पूजन अर्चन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। 84 महादेव मे 70वां स्थान रखने वाले श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव की महिमा अपरंपार है। बताया जाता है कि इनके दर्शन, स्पर्श करने और नाम का उच्चारण लेने मात्र से ही भक्त सहस्त्र ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्ति पा जाता है। साथ ही खोया हुआ राज्य और ऐसे लोग जो बिछड़ गए हैं वे भी श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव का पूजन अर्चन करने से जल्द मिल जाते हैं। शिप्रा नदी की छोटी रपट के पास गंधर्व घाट पर श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव का अत्यंत प्राचीन मंदिर स्थित है।
सभी मनोरथों को पूरा करते हैं दुर्द्धर्षेश्वर महादेव
मंदिर के पुजारी पंडित आशुतोष शास्त्री बताते हैं कि पश्चिम दिशा की ओर मंदिर का मुख है, जिसके गर्भगृह में भगवान श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। मंदिर में भगवान शिव की इस प्रतिमा के साथ ही माता पार्वती, कार्तिकेय, श्री गणेश और नंदी जी की प्रतिमा के साथ ही दो शंख तथा सूर्य चंद्र की आकृति दिखाई देती है। मंदिर में श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव उत्तर दिशा की ओर मुख किए हुए हैं। पुजारी पंडित आशुतोष शास्त्री के अनुसार वैसे तो प्रतिदिन ही भगवान का पूजन अर्चन और जल चढ़ाने से विशेष लाभ प्राप्त होता है, लेकिन पूर्णिमा और अमावस्या पर मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन भगवान का पूजन अर्चन करने पहुंचते हैं। मंदिर के बारे में ऐसी भी मान्यता है कि यदि चतुर्दशी के दिन इनका पूजन अर्चन किया जाता है तो यह हमारे सभी मनोरथों को पूर्ण करते हैं।
राजा के नाम पर है मंदिर का नाम
इस मंदिर से जुड़ी कथा में इस बात का उल्लेख है कि जिस राजा ने यहां भगवान की पूजा अर्चना की थी, उससे ही उन्हें अपनी खोई हुई पत्नी वापस मिली और उन्हीं के नाम पर शिवलिंग का नाम श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव हुआ। जिसे अब इसी नाम से जाना जाता है। स्कंद पुराण के अवंती खंड की कथा बताती है कि नेपाल मैं कुछ वर्षों पूर्व दुर्द्धुर्ष नाम के राजा हुआ करते थे। एक बार जब वे एक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें अचानक एक कन्या पसंद आ गई। वह मन ही मन उस कन्या से विवाह करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने कन्या की जानकारी निकाली और उसके बाद राजा कन्या के पिता तपस्वी कल्प के पास पहुंचे और उन्होंने उनसे अपने मन की बात कही। तपस्वी ने अपनी पुत्री और राजा दोनों की बात सुनने के बाद कन्या का विवाह कर उसे राजा को सौंप दिया, लेकिन राजा पत्नी को अपने साथ महल ले जाने की बजाय उसे एक वन में ले जाकर विचरण कर रहे थे।
उन्हें वन में इतना समय हो गया था कि यह भूल ही गए थे कि वह किसी राज्य के राजा हैं और उनके ना होने पर राज्य में क्या हो रहा होगा। राजा वन में पत्नी के साथ घूम ही रहे थे कि तभी एक दिन एक दैत्य ने राजा की पत्नी का हरण कर लिया। क्योंकि दैत्य काफी विशालकाय था। इसीलिए राजा उस कन्या को नहीं बचा पाए और सिर्फ विलाप करते रह गए। राजा की इस दशा की जानकारी जब तपस्वी कल्प को लगी तो उन्होंने राजा को महाकाल वन उज्जैन में स्थित एक विशेष शिवलिंग की जानकारी देते हुए कहा कि हे राजन आप इस मंदिर पर जाइए और यहां सच्चे मन से भगवान का पूजन अर्चन करें। जिससे आपको न सिर्फ आपकी खोई हुई पत्नी वापस मिल जाएगी बल्कि आपको आपका खोया हुआ राज्य भी मिलेगा। राजा दुर्द्धुर्ष ने तपस्वी कल्प द्वारा बताए गए शिवलिंग का पूजन अर्चन किया, जिससे न सिर्फ उन्हें खोई हुई पत्नी वापस मिल गई बल्कि राज्य का भी पता चल गया कि वह नेपाल राज्य के राजा हैं। जहां उनकी अन्य भी रानियां है। राजा के द्वारा किए गए पूजन अर्चन और तपस्या के कारण ही इस शिवलिंग का नाम राजा दुर्द्धुर्ष के नाम पर प्रसिद्ध हुआ और इस शिवलिंग को श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव के नाम से पहचाना जाने लगा।