शिप्रा नदी
– फोटो : न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर
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मोक्षदायिनी क्षिप्रा Shipra नदी के सूखने के बाद अब जीवनदायिनी नर्मदा भी उसी राह पर चल निकली है। अंधाधुंध जंगलों की कटाई, भूजल का अति दोहन और नदियों के आसपास का अतिक्रमण नदियों के सूखने का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। यह बात हाल ही में आई एक रिसर्च रिपोर्ट में बताई गई है। एक साल तक चले इस रिसर्च के बाद निष्कर्ष निकला है कि भविष्य में मालवा और उसके आसपास के क्षेत्रों में पानी की भीषण कमी हो सकती है और यदि समय रहते नहीं चेता गया तो हमें एक एक बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है। इस रिपोर्ट को पर्यावरणविद् डाक्टर स्वाति सम्वत्सर, इंजीनियर मिलिंद पंडित, इंजीनियर जयंत दाभाड़े, संजय व्यास, समीर शर्मा, ललित चव्हाण और बड़ी संख्या में क्षिप्रा को बचाने के लिए काम कर रहे सेवाभावियों की टीम ने तैयार किया है।
मोक्षदायिनी क्षिप्रा का पानी पीकर गंभीर बीमार पड़ सकते हैं लोग
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि उज्जैन में मोक्षदायिनी क्षिप्रा के जिस जल से लोग आचमन करते हैं वह इतना अधिक गंदा है कि उसको पीकर लोग गंभीर बीमार पड़ सकते हैं। इसके साथ उज्जैन के आसपास के क्षेत्र में क्षिप्रा का भूजल स्तर न के बराबर बचा है। महाकाल Mahakaleshwar Mandir दर्शन के लिए बड़ी संख्या में देशभर से लोग उज्जैन आते हैं और क्षिप्रा में भी डुबकी लगाते हैं। खेती के लिए लगाए जा रहे हैडपंप, ट्यूबवेल और मोटरों की वजह से हालत यह हो चुकी है कि भविष्य में भी क्षिप्रा के पुनर्जीवित होने की संभावनाएं खत्म हो रही हैं।
मानव निर्मित चुनौतियां
• जल संचयन संरचनाओं का मेंटेनेंस नहीं होना, सही जगह निर्माण का आभाव
• सेटेलाईट सर्वे से सिंक कर डग वेल, डाईव, स्टॉप डैम का निर्माण और रिपेयर का अभाव
• इंदौर के सीवेज वाटर का सीधे कान्ह के माध्यम से क्षिप्रा में मिलना
• इंडस्ट्रियल प्रदूषण बिना ट्रीटमेंट सीधे कान्ह / नालों के माध्यम से क्षिप्रा में छोड़ना
• भूजल का अत्यधिक उपयोग, डोमेस्टिक / इंडस्ट्री नलकूप और सिंचाई में
• कम जल निकासी घनत्व
• सूक्ष्म सिंचन पद्धति का कम उपयोग
• जन जागरण, जन सहयोग का पूर्ण अभाव
प्राकृतिक चुनौतियां
• क्षेत्र में काली मिट्टी की अभेद्य परत, इसलिए प्राकृतिक रूप से पानी जमीन में नहीं जा पाता
• वर्षा की अनिश्चितता एवं तापमान में वृद्धि
• वन भूमि केवल 1.5%, नदी के किनारों पर अनिवार्य सीमा में वन रोपण
• वर्षा जल पुनर्भरण तंत्र का घटना
• अतिक्रमण, अवैध निर्माण, अवैध दोहन, अवैध उत्खनन
इसलिए हो यह पुनरुद्धार
क्षिप्रा सूख रही है, प्रदूषण से यह मरणासन्न है। मानसून के तीन माह में ही सूख जाती है
क्षिप्रा के जल ग्रहण क्षेत्र में भूजल का अत्यधिक दोहन
मालवा क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण नदी
हिन्दुओं का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक समागम सिंहस्थ कुंभ शाही स्नान / पवित्र स्नान, अर्पण तर्पण इसी पवित्र नदी के तटों पर सम्पन्न होता है
लाखों कुएं, बावड़ी, नलकूप इसी पर निर्भर हैं
यह चंबल की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो गंगा को सदा नीरा रखने में सहायता करती है
किसान और आम जन बेहद दुखी / द्रवित और पानी की कमी/ इसके प्रदूषण से त्रस्त हैं
क्षिप्रा के जल ग्रहण क्षेत्र में वन्य क्षेत्र केवल 1.5 % ही है
नर्मदा पर बढ़ती निर्भरता को कम करना
तेजी से बढ़ता अतिक्रमण