इससे पहले पूर्व कैबिनेट मंत्री पं हरिशंकर तिवारी का पार्थिव शरीर दोपहर 3.30 बजे पैतृक गांव टाड़ा पहुंचा। गांव के लाल का अंतिम दर्शन करने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी हुई थी। गांव की महिलाएं, पुरूष, नौजवान, बच्चे, वृद्ध सभी पंडित जी के अंतिम दर्शन को बेताब दिखे।
पंडित भृगुनाथ चतुर्वेदी बालिका इंटर कॉलेज होते हुए शव यात्रा बड़हलगंज पहुंची। पंडित जी के निधन पर शोक जताने व अंतिम दर्शन के लिए सड़क के किनारे लोग खड़े दिखे। नेशनल पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज पर कुछ देर तक पार्थिव शरीर रखे वाहन को रोका गया। यहां लोगों ने अपने नेता का अंतिम दर्शन किया। इसके बाद शव यात्रा मुक्तिपथ के लिए रवाना हुई।
सत्तर के दशक में देश की राजनीति तेजी से बदल रही थी। जेपी की क्रांति और कांग्रेस को मिल रही चुनौतियों का असर हर राज्य में नजर आ रहा था। इससे राजनीति का गढ़ कहे जाने वाले पूर्वांचल के छात्र नेता भी अछूते नहीं थे। विश्वविद्यालयों में वर्चस्व की लड़ाई की शुरुआत हो चुकी थी। उस वक्त हरिशंकर तिवारी गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में बड़ा नाम बनकर उभरे थे।
हरिशंकर तिवारी की ख्याति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चिल्लूपार सीट से वे 22 साल तक लगातार विधायक चुने गए। हरिशंकर की एक खूबी ये भी रही कि हर दल के साथ उनके करीबी रिश्ते रहे। सत्ता चाहे जिसकी भी रही वे हमेशा मंत्री बनते रहे। बीजेपी का दौर हो या समाजवादी पार्टी अथवा बहुजन समाज पार्टी का, हर बार पंडित हरिशंकर को सराकर में बड़ा ओहदा मिला।