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विदिशा जिले के उदयपुर में अवैध कब्जे से मुक्त कराए गए एक हजार साल पुराने राजमहल का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। परमार राजाओं का यह वैभवशाली महल इतिहास के नए अध्याय खोल रहा है। मलबे में दबे गलियारे, सीढ़ियां, तलघर, महल की भीतरी दीवारों के सदियों पुराने रंग, घुड़साल और दैनिक उपयोग की चीजें निकलकर सामने आई हैं। भगवान गणेश की एक खंडित प्रतिमा भी मिली है।

एक हजार साल पुराने परमार राजवंश के इस महल के खंडहरों पर एक काजी परिवार का कब्जा था और वहाँ मदरसा चल रहा था। भोपाल से नियमित मासिक हेरिटेज वॉक के कारण यह सबके संज्ञान में आया और एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद महल को कब्जे से खाली करा लिया गया। अब यह एक राज्य संरक्षित स्मारक घोषित हो चुका है। सबसे महत्वपूर्ण है महल के भव्य कमरों में दो विशाल गोपनीय लॉकर जैसी संरचनाएं, जो तीन फुट मोटी दीवार के भीतर बनाए गए थे। ये तीन फुट चौड़े, पांच फुट लंबे और चार फुट ऊंचाई के हैं। मलबे में दबे रहे एक कमरे की चिकनी दीवार और उस पर सदियों पुराने लाल-हरे रंग की पुताई के चिह्न साफ नजर आ रहे हैं। राजसी कक्षों की दीवारों में तराशे हुए पत्थर की प्लेटों पर मोर, फूल और कलश की कलाकृतियां आज भी आकर्षक हैं। एक विशाल कक्ष की चौंकाने वाली तस्वीर भी सामने आई है, जिससे पता चलता है कि अवैध कब्जे के दौरान महल के कीमती पत्थरों की चोरी बड़े पैमाने पर की जाती रही है। जीर्णोद्धार के शुरुआती नतीजे आशाजनक हैं। 

राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी का कहना है कि उदयपुर विरासत के संरक्षण की एक मॉडल स्टोरी है। इसकी प्रशंसा पद्मश्री केके मोहम्मद जैसे प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता भी कर चुके हैं। सरकार उदयपुर का आर्कियोलॉजिकल मास्टर प्लान बनाए तो यह उजाड़ कस्बा मध्यप्रदेश को एक नई पहचान देगा। आर्किटेक्ट पीयूष जोशी का कहना है कि चारों तरफ दुर्ग की विशाल दीवारों से घिरा उदयपुर आर्किटेक्ट की शानदार मिसाल है। आर्किटेक्चर के आधुनिक स्कूलों के लिए भी यह एक मॉडल है। पर्यटकों के लिए नगर के पुराने डिजाइन को साइन बोर्ड पर बनाया जाना चाहिए। यह बस्ती महत्वपूर्ण लर्निंग सेंटर रही है। पुरातत्ववेत्ता डॉ. नारायण व्यास कहते हैं उदयपुर में सबकी उपेक्षा के बावजूद इस लावारिस महल में काफी कुछ सुरक्षित बचा रह गया है। यह मध्यप्रदेश की एक नई पहचान बन रहा है।

 

दो साल में बदल गई तस्वीर

ग्यारहवीं सदी के नीलकंठेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध उदयपुर में खसरा नंबर 822 पर चार बीघा में यह राजमहल फैला है। करीब दो साल पहले इतिहासकार डॉ. सुरेश मिश्र और राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी हेरिटेज वॉक पर यहां आए थे। तब महल पर किसी ने निजी संपत्ति का साइन बोर्ड टांगा हुआ था। सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीरें वायरल होते ही सरकार हरकत में आई। जिला कलेक्टर उमाशंकर भार्गव ने गत वर्ष महल को सरकारी संपत्ति घोषित किया। तुरंत ही पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग ने उसे राज्य संरक्षित स्मारक की सूची में शामिल कर लिया। पहली बार महल का प्राचीन वैभव सामने आया है।

इंटेक कर रहा है जीर्णोद्धार

शासन की ओर से इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) को महल के जीर्णोद्धार का काम दिया गया है। इंटेक की टीम ने डेढ़ माह के प्रयास से इस विशाल परिसर की व्यापक सफाई की है। अभी यह शुरुआती चरण है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह काम कई महीनों तक चलेगा। अब तक मलबे से बाहर आई उदयपुर की विरासत पर्यटकों को आकर्षित कर रही है। महल के उन हिस्सों में जाना सुगम हो रहा है, जो सदियों से धूल-मिट्टी में दबे हुए थे। जो कुछ सामने आ रहा है, वह एक विकसित नगर सभ्यता के रूप में उदयपुर का नया परिचय है। 

महल के कायाकल्प पर होंगे पांच करोड़ खर्च   

कब्जामुक्त होने के बाद भी दो माह पहले तक यह मलबे में बिखरा हुआ एक विशाल खंडहर था। मगर आज हर दिन सदियों पुराने स्थापत्य और निर्माण तकनीक के नए-नए प्रमाण सामने आ रहे हैं। महल के कायाकल्प के लिए पांच करोड़ रुपए की लागत का आकलन किया गया है। शासन ने इंटेक के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। दिसंबर में पुरातत्व आयुक्त शिल्पा गुप्ता के दौरे के बाद इस कार्य के पहले चरण में एक करोड़ रुपए का आवंटन हो चुका है। पहली बार उदयपुर पर शासन का ध्यान भी गया है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान नियमित अपडेट ले रहे हैं।

एक माह से हो रही है मलबे की सफाई

एक माह से मलबे की सफाई में जुटे विशेषज्ञ हैरान हैं कि इतना विशाल महल परिसर नाजायज कब्जे में कैसे बना रहा। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण शर्मा कहते हैं कि जिला प्रशासन के स्तर पर एक विशेष मास्टर प्लान बनाने की जरूरत है। लगभग 45 स्मारक यहां हैं। इनमें मंदिर, महल, बावड़ियाँ, दरवाजे शामिल हैं। संकरी बदहाल गलियों में इनकी कनेक्टिविटी बेहद दयनीय है। मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार को खोलने के साथ पार्किंग के इंतजाम किए जाने चाहिए। अतिक्रमण मुक्त हुए मुख्य मार्ग को नो-व्हीकल जोन बनाया जा सकता है। मुख्य तिराहे का सौंदर्यीकरण भी। पंचायत और प्रशासन मिलकर यह काम कर सकते हैं।

 

1080 में बनकर तैयार हुआ था मंदिर

एक शिलालेख के अनुसार नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर सन् 1080 में तैयार हुआ था। परमार राजाओं ने 350 साल राज किया। उनकी राजधानी पहले उज्जैन और फिर धार हुई। राज्य की उत्तरी सीमा पर उदयपुर सामरिक रूप से महत्वपूर्ण था। राजा उदयादित्य परमारों की 12वीं पीढ़ी में हुए, जिनके नाम से यह बस्ती है। इस मंदिर के अलावा राजा उदयादित्य ने एक विशाल उदय सागर भी बनवाया था। दो साल पहले इस उदय समुद्र के एक किलोमीटर लंबे घाट भी सामने आए। इसके अलावा एक ही चट्टान पर देश की सबसे बड़ी 27 फुट लंबी नटराज मूर्ति की चर्चा भी हुई। विदिशा का प्रसिद्ध बीजामंडल या विजय मंदिर राजा उदयादित्य के बेटे और उनके उत्तराधिकारी राजा नरवर्मन ने बनवाया था, जिसे 1235 में इल्तुतमिश ने विदिशा पर हमले के दौरान तोड़कर बरबाद किया।

उदयपुर पर दो किताबें, डिस्कवरी चैनल पर डॉक्युमेंट्री

2018 में लेखक और राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने उदयपुर की मासिक हेरिटेज वॉक शुरू की थी। उन्होंने सोशल मीडिया पर उदयपुर के इतिहास पर नियमित लिखा। डॉ. सुरेश मिश्र और डॉ. नारायण व्यास जैसे विषय विशेषज्ञों समेत देश की कई जानी-मानी हस्तियां हेरिटेज वॉक का हिस्सा बनीं। इस चहल-पहल ने राष्ट्रीय स्तर पर उदयपुर की पहचान बनाई। आजादी के बाद पहली बार इंटेक जैसी संस्था ने उदयपुर का दस्तावेजीकरण किया। पहली बार हमें पता चला कि केवल मंदिर ही नहीं, पूरा नगर एक विकसित सभ्यता का प्रमाण है। उदयपुर की केस स्टडी पर विजय मनोहर तिवारी की किताब “जागता हुआ कस्बा’ भी चर्चित हुई है। हाल ही में डिस्कवरी प्लस की टीम ने उदयपुर का फिल्मांकन एक डॉक्युमेंट्री के लिए किया। तिवारी ने हाल ही में राज्यपाल मंगु भाई पटेल को भी हैरिटेज वॉक का आमंत्रण दिया है।    



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