एक हजार साल पुराने परमार राजवंश के इस महल के खंडहरों पर एक काजी परिवार का कब्जा था और वहाँ मदरसा चल रहा था। भोपाल से नियमित मासिक हेरिटेज वॉक के कारण यह सबके संज्ञान में आया और एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद महल को कब्जे से खाली करा लिया गया। अब यह एक राज्य संरक्षित स्मारक घोषित हो चुका है। सबसे महत्वपूर्ण है महल के भव्य कमरों में दो विशाल गोपनीय लॉकर जैसी संरचनाएं, जो तीन फुट मोटी दीवार के भीतर बनाए गए थे। ये तीन फुट चौड़े, पांच फुट लंबे और चार फुट ऊंचाई के हैं। मलबे में दबे रहे एक कमरे की चिकनी दीवार और उस पर सदियों पुराने लाल-हरे रंग की पुताई के चिह्न साफ नजर आ रहे हैं। राजसी कक्षों की दीवारों में तराशे हुए पत्थर की प्लेटों पर मोर, फूल और कलश की कलाकृतियां आज भी आकर्षक हैं। एक विशाल कक्ष की चौंकाने वाली तस्वीर भी सामने आई है, जिससे पता चलता है कि अवैध कब्जे के दौरान महल के कीमती पत्थरों की चोरी बड़े पैमाने पर की जाती रही है। जीर्णोद्धार के शुरुआती नतीजे आशाजनक हैं।
राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी का कहना है कि उदयपुर विरासत के संरक्षण की एक मॉडल स्टोरी है। इसकी प्रशंसा पद्मश्री केके मोहम्मद जैसे प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता भी कर चुके हैं। सरकार उदयपुर का आर्कियोलॉजिकल मास्टर प्लान बनाए तो यह उजाड़ कस्बा मध्यप्रदेश को एक नई पहचान देगा। आर्किटेक्ट पीयूष जोशी का कहना है कि चारों तरफ दुर्ग की विशाल दीवारों से घिरा उदयपुर आर्किटेक्ट की शानदार मिसाल है। आर्किटेक्चर के आधुनिक स्कूलों के लिए भी यह एक मॉडल है। पर्यटकों के लिए नगर के पुराने डिजाइन को साइन बोर्ड पर बनाया जाना चाहिए। यह बस्ती महत्वपूर्ण लर्निंग सेंटर रही है। पुरातत्ववेत्ता डॉ. नारायण व्यास कहते हैं उदयपुर में सबकी उपेक्षा के बावजूद इस लावारिस महल में काफी कुछ सुरक्षित बचा रह गया है। यह मध्यप्रदेश की एक नई पहचान बन रहा है।