विश्व प्रसिद्ध महाकाल मंदिर में सशुल्क दर्शन व्यवस्था को लेकर संत महंतों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। उन्होंने शुल्क दर्शन व्यवस्था को तत्काल बंद करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पत्र लिख दिए हैं। पत्र में सशुल्क दर्शन व्यवस्था को मुगलकाल के समय चलने वाले जजिया कर के रूप में बताया गया है। साथ ही यह भी लिखा गया है कि पाकिस्तान में किसी हिंदू मंदिर में किसी को प्रवेश ना मिले तो समझ आता है लेकिन हिंदुस्तान में भी हिंदुओं के साथ दर्शन के लिए ऐसा भेदभाव होना सरासर गलत है। पत्र में यह भी लिखा गया है कि धर्म स्थल पर केवल अर्थोपार्जन करना विनाश का लक्षण है। कुप्रबंधन चलता रहा तो इसका दुष्परिणाम सत्ताधीशों को भुगतना होगा।
डॉ. सुमनानन्द गिरि महामंडलेश्वर श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा पीठाधीश्वर श्री मौनतीर्थ पीठ गंगाघाट और क्रांतिकारी संत परमहंस डॉ. अवधेश पुरी महाराज स्वस्तिक पीठाधीश्वर ने महाकालेश्वर मंदिर की शुल्क दर्शन व्यवस्था के विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी पत्र लिखा है। इसमें बताया है कि मंदिर प्रशासन की भेदभाव पूर्ण व्यवस्था और धर्म स्थल को अर्थोपार्जन का केंद्र बना देने से यही कीर्ति अपकीर्ति में परिवर्तित होती जा रही है। आपके सुयोग्य नेतृत्व और लोकप्रियता के एकदम प्रतिकूल है। इससे प्रतीत होता है कि मंदिर प्रबंधन का उद्देश्य एकमात्र अर्थ एकत्रित करना रह गया है। इससे समस्त देशवासियों की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं। धर्म के प्रति विश्वास खंडित हो रहा है। स्थिति यह है कि श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर को लूट खसोट का अड्डा कहने में भी संकोच नहीं की जा रही है। भयवश श्रद्धालुजन सामने नहीं आ रहे, किंतु मंदिर प्रबंधन का ऐसा ही कुप्रबंधन अनवरत रहा तो इसका दुष्परिणाम सत्ताधीशों पर ही होगा।
संतों का कहना है कि दर्शनार्थियों से दर्शन शुल्क, गर्भगृह में प्रवेश शुल्क, प्रोटोकॉल शुल्क और भस्मारती दर्शन के लिए जो पैसा लिया जा रहा है, उसे जजियाकर के रूप में देखा जा रहा है। शुल्क लेने तक तो ठीक है, किंतु शिव के आराध्यों और उनके अनुयायियों को साधु संतों के साथ प्रवेश करने की अनुमति नहीं मिल पा रही है। पत्र में लिखा है कि आप पता कर सकते हैं कि महाकाल के भक्त दर्शन के लिए कितनी पीड़ा से होकर गुजरते हैं तब कहीं जाकर उनको दर्शन हो पाते हैं।
कलेक्टर-एसपी के कोटे भी समाप्त कर दो
संतों ने कहा कि यदि मंदिर प्रशासन ने कलेक्टर, एसपी आदि का कोटा निर्धारित कर रखा है तो साधु संतों और महामंडलेश्वरों के लिए भी कोटा निर्धारित किया जाए, जिससे कि उनके शिष्य, भक्त और अनुयायी भी प्रवेश कर दर्शन कर सकें। ऐसा नहीं किया जाता तो कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के कोटा भी समाप्त कर दिया जाए, जिससे कि समानता का संदेश दिया जा सके।
दर्शन के नाम पर शुल्क क्यों..?
बाबा महाकाल में आस्था रखने वाले अनेक दानदाता सामने आ रहे हैं। अग्रवाल ग्रुप 18 करोड़ रुपये से अन्नक्षेत्र भवन बनवा रहा और नया फेसिलिटी सेंटर भी बनवाने के लिए एक दानदाता ने 10 करोड़ रुपये देने की सहमति दी है। जेके सीमेंट ग्रुप ने निमार्णाधीन अन्नक्षेत्र के सामने गेस्ट हाउस बनवाया है। अत: उद्योगपतियों से व्यवस्था के लिए भी दानराशि लेकर सामान्य श्रद्धालुओं के लिए लागू शुल्क व्यवस्था समाप्त कर देना चाहिए। वर्तमान में महाकाल मंदिर में व्यवस्था के नाम पर जो शुल्क लिया जा रहा है वह अविलंब बंद होना चाहिए।
कांग्रेस मेनिफेस्टो में लिखे महाकाल मंदिर में निशुल्क दर्शन व्यवस्था की बात
स्वस्तिक पीठाधीश्वर डॉ. अवधेशपुरी महाराज ने कांग्रेस के पदाधिकारियों को कहा है कि वे यदि अपने आपको भगवान शिव का भक्त कहते हैं तो उन्हें अपने घोषणा पत्र में यह बात लिखनी चाहिए कि महाकाल मंदिर में वीआईपी कल्चर को समाप्त किया जाएगा। मंदिर में निशुल्क दर्शन व्यवस्था लागू की जाएगी। मध्यप्रदेश में मठ मंदिरों के सरकारीकरण को समाप्त किया जाएगा।