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Miya Bhopali Jhole Batole: Will the 'Deepak' of rebellion in BJP burn or extinguish?

अमर उजाला ग्राफिक्स
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार

को खां, अपने एमपी में विधानसभा चुनाव में अभी छह महीने हेंगे पर हुकूमत पे काबिज बीजेपी में बगावत का परचम कई इलाकों में बुलंद हो रिया हे। ये बागी लोग पार्टी के पुराने कारकरता हें अोर इन्हें लग रिया हे के बीजेपी के नए निजाम में उनकी कोई सुनवाई नई हो रई। बगावत के ये सुर दोतरफा हेंगे। एक तो कारकरताओं की उपेक्षा ओर दूसरा बीजेपी में पुराने कांगरेसी ज्योतिरादित्य सिंधिया ओर उनके पट्ठों की मिल रई तवज्जो। इन बागी नेताओं को लग रिया हे के नए माहोल में उनका हक मारा जा रिया हे। जानकारों का ये केना हे के ये तमाम कवायद आगामी चुनाव में टिकट हासिल करने के लिए हेगी। मगर पार्टी की पेशानी पे सलवटें इस बात की हें के अगर बगावत का आलम ऐसेई रिया तो बीजेपी की चुनावी जमावट का उल्टा असर होगा।

बीजेपी में बगावत का बिगुल सबसे पेले माजी सीएम केलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी ने फूंका। पिछला चुनाव हारे दीपक चार साल तक खामोश रिए। अब अचानक उनको अपने मरहूम वालिद की बेदअबी का खयाल आया। केन लगे के शिवराज सरकार ने मेरे पिता की उपेक्षा करी। केलाशजी का स्मारक खंडहर हो गया। उनकी मर्जी के मुताबिक बागली को जिला नई बनाया। दीपक ने कई संजीदा इल्जाम भी लगाए। मसलन बीजेपी अब कारकरताओं की नई कारपोरेट पार्टी बन गई हे। पुराने लोगो की कोई सुनवाई नई हो रई। उनसे कोई ने बात नई करी। अब तो खाली गाड़ी कपड़े ओर बंगला देख के बातें होती हेंगी। पूरा पिरदेश भिरष्टाचार में डूबा हे।

मियां, जानकारों का केना हे के दीपक जोशी ने सारा दबाव फिर से हाटपिपल्या से टिकट पाने के वास्ते बनाया था, मगर पार्टी ने खास भाव नई दिया। ऐसे में उन्होंने कांग्रेस में जाने का मन बना लिया। कांग्रेस को भी ऐसे नाराज लोगों  की जरूरत हे। दीपक जोशी से बेहतर बंदा कहां मिलता। मुमकिन हे के वो उन्हें टिकट भी दे दे। अगर दीपक जीते तो ठीक वरना जयश्रीराम। नाराज दीपक ने भोपाल में वो बंगला भी खाली कर दिया, जिसमे वो चुनाव हारने के बाद रेह रिए थे। उन्होंने बागली में 17 करोड़ के आवास घोटाला का मुद्दा उठाया पर कोई कार्रवाई नई हुई।

बीजेपी में बगावत की ये आग उस मालवा से फेल रई हे, जो एक जमाने में बीजेपी का गढ़ हुआ करता था। बागी पार्टी के एक ओर पुराने विधायक भंवरसिंह शेखावत ने तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ओर उनके समर्थकों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया हे। भंवरसिंह का केना हे के सिंधिया के आने से पार्टी को फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ हे। भंवरसिंह को तो ये भी समझ नई आ रिया के उनको पार्टी ने हाशिए पे क्योंकर डाला हुआ हे? वो तो यहां तक के रिए हें के जहां से पार्टी को हार का डर हो, वहां से मुझे चुनाव  में उतार दो।  पर इसकी भी कोई सुनवाई नई हो रई।  

खां, इंदोर के ई एक ओर बुजुर्ग बीजेपी नेता ओर शायर सत्यनारायण सत्तन भी खफा हुए बेठे हें। सत्तन जी खरी खरी केने वालों में से हें। उनकी नाराजी दूर करने सीएम ने बुलवाया पर सत्तनजी नई गए। पार्टी के कुछ ओर पुराने नेता हाशिए पे हें। धार के विक्रम वर्मा ओर सांची से गोरीशंकर शेजवार भी नाराज चल रिए हें। शेजवार तो दीपक जोशी की राह पे जा सकते हें, ऐसी चर्चा हे। इनके अलावा मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी तो महीनो से अलग विंध्य पिरदेश की अलख जगाने में लगे हें। मगर पार्टी ने उनके खिलाफ कोई एक्शन नई लिया हे। 

इन बागी लोगों का सियासी मुस्तकबिल क्या होगा, यह तो वक्त बताएगा, मगर आज की तारीख में बीजेपी की हकूमत में वापसी के अरमानो पे लोग पलीता लगा रिए हें। वेसे चुनाव के वक्त जिन भाजपाइयों ने पाला बदला हेगा, वो फिर कभी नई उठ पाए। सरताजसिंह इसकी मिसाल हें। 

– बतोलेबाज  

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw।co।in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

 

 

        

 



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