राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की 2,100 वर्ग मील दूरी तय करके राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य यहां विराम पाता है। इससे यहां चांदी की तरह चमकते विशाल रेतीले मैदान दिखते हैं। राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में तमाम जलचरों और नभचरों का ठिकाना होने से रेत खनन पर प्रतिबंध है। उत्तर प्रदेश के जालौन, औरैया और इटावा जिले सहित मध्यप्रदेश के भिंड जनपद मुख्यालयों से समान दूरी पर पंचनद संगम है। जो विश्व का सबसे अनोखा स्थल माना जाता है। यहां चंबल, यमुना, सिंध, पहुंज और क्वारी नदियों का महासंगम होता है। चंबल-अंचल के बीहड़ों में आध्यात्मिक और पर्यटन के नजरिए से यह अद्भुत स्थल है। 



पांच नदियों के संगम पर चांदी की तरह चमकते विशाल रेतीले मैदान गोवा की खूबसूरती को मात देते हैं। चंबल-अंचल में बड़े पैमाने पर रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट पाले जाते थे। लेकिन अब ऊंट पालकों की संख्या में लगातार गिरावट देखी जा रही है।


एक दशक से अधिक समय से चंबल-अंचल की बेहतरी के लिए कार्य करने वाले चंबल विद्यापीठ के संस्थापक डॉ. शाहआलम राना कहते हैं कि बीहड़वासियों को सामान उठाने के लिए ऊंट एक सहारा रहा है। चंबल नदी के किनारे रहने वाले ऊंट पालकों पर आये दिन भारतीय वन अधिनियम और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज होती रहती है। इससे ऊंटों की तादाद में भारी गिरावट देखी जा रही है। ऊंट पालकों की भी आजीविका का सवाल लगातार पीछा करता रहा है।


अगर चंबल में ऊंटों के मार्फत पर्यटन के रास्ते खुलते हैं तो ऊंटों की तादाद में और इजाफा हो सकेगा। तीन दिवसीय पंचनद कैम्पिंग फेस्टिवल में सैलानी ऊंट उत्सव का आनंद ले सकेंगे। सजे धजे ऊंट की सवारी फोटोग्राफी के शौकीने के लिए जहां चार चांद लगाएगी, वहीं पलायन की मार से जूझ रहे बीहड़वासियों के लिए रोजगार के अवसर भी मुहैया कराएगी।


चंबल में पर्यटन को बढ़ाने के मकसद से इस तीन दिवसीय सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन में सैलानी अपनी रूचि के अनुसार हिस्सेदारी कर सकेंगे। दरअसल, दस्यु दलों के सफाए के बाद सैलानी यहां बिना रोक-टोक के अब पहुंच सकेंगे। आजादी से पहले और आजादी के बाद सरकारों की बेरूखी से जो ब्रांडिंग पंचनद की होनी चाहिए थी, वो नहीं की गई। लिहाजा पंचनद का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जितनी लोकप्रियता और ख्याति इस महासंगम को मिलनी चाहिए थी, वो नहीं मिल सकी।




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