वार्ड संख्या                         उम्मीदवार
44  मकदूम नगर              सद्दीक मोहम्मद
46 बदरबाग                      सरफराज अनवर
47 नगला आशिकअली      राजुद्दीन ठेकेदार
52 दोदपुर                           महरोज अहमद गाजी
61   जाकिर नगर                जाहिदा बेगम
65 मौलाना आजाद नगर     नूरबानो
66 शांतिनिकेतन कॉलोनी     मो. इमरान
68 उस्मान पाड़ा                        शाकिब बेग
71 टनटन पाड़ा                   मो. अनवर
74  केला नगर                      यामीन
77  शाहजमाल                     जौहरा बेगम
80 हमदर्द नगर                     बाबर अली खान
84 भुजपुरा                       हाजी अनवार
85  बादाम नगर                   साजदा
86 सुपर कॉलोनी                  रुस्तम कसगर
87 बनिया पाड़ा                    बदरून
89  तेलीपाड़ा                           सलमा
90   नगला पटवारी                बबली

एएमयू कुलपति को विधानपरिषद में जगह भी मुस्लिमों को रिझाने की रणनीति का हिस्सा

एएमयू के पूर्व कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर का विधानपरिषद में मनोनयन भी मुस्लिम, खास तौर पर पसमांदा वोटरों को भाजपा से जोड़ने की कवायद का हिस्सा ही माना गया था। दरअसल, केंद्र में एनडीए सरकार के कार्यकाल में प्रोफेसर तारिक मंसूर को जब कुलपति पद से नवाजा गया तभी इस बात की चर्चा थी कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का उनके ऊपर वरदहस्त था। हालांकि न कभी प्रोफेसर मंसूर ने इसकी तस्दीक की न ही कभी संघ नेतृत्व ने ऐसा कोई दावा किया। लेकिन भाजपा, प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के प्रति प्रोफेसर तारिक मंसूर के अनुराग की एएमयू परिसर में उनके पूरे कार्यकाल में चर्चा होती रही। अंत में विधानपरिषद में चयन ने इस चर्चा पर पुष्टि की मुहर लगा दी।

अब ‘ट्रिपल इंजन’ की सरकार पर जोर

ब्रज क्षेत्र में मुख्यमंत्री ने जनसभाएं करके चुनावी बिगुल बजा दिया है। इन सभाओं में मुख्यमंत्री ट्रिपल इंजन की सरकार पर जोर दे रहे हैं। देश-प्रदेश में भाजपा की सरकार है। पिछले कार्यकाल में कई निगमों में भाजपा के मेयर के तौर पर तीसरा इंजन भी मौजूद था। लेकिन अलीगढ़ की स्थिति इस मामले में थोड़ी अलग है। समस्याओं से ग्रस्त इस महानगर में पूरे पांच साल ट्रिपल इंजन गायब रहा। चाहे शहर के हर वार्ड में अटी-पटी गंदगी हो, बहते परनाले हों अथवा अंधेरे का राज कायम करने की मददगार बुझी मिचमिचाती स्ट्रीट लाइटें। वक्त अब वोटरों के हिसाब मांगने का है।  भाजपा को इस बात की सहूलियत है कि वह इसके लिए बसपा की अगुवाई वाली शहर की सरकार  पर आरोप लगाकर अपना पल्ला झाड़ ले। बसपा को शायद इस बात का अहसास हो चला है। उसने पिछली बार जीत दर्ज करने वाले मेयर का टिकट काटकर शहर की समस्याओं के लिए आरोपों की धार कुंद करने की कोशिश की है।



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