बिगड़ते पर्यावरण की चिंता दमोह के एक 25 वर्षीय आईटी इंजीनियर डॉ. चयन लोहा को गुजरात से गांव खींच लाई। उन्होंने आठ लाख रुपये की नौकरी का पैकेज ठुकरा दिया और गांव आकर गौशाला खोल ली। गाय के गोबर से ईंटें बनाईं और इनसे ऐसा मकान बनाया जो ठंड-गर्मी और बैक्टीरिया मुक्त है। यह प्रदेश का दूसरा ऐसा प्रयोग है। इससे पहले ग्वालियर में ऐसा मकान बन चुका है।
डॉ.लोहा ने यह काम दमोह जिले के जबेरा ब्लॉक के बडगुंवा गांव में किया। यहां उन्होंने 10 हजार ईंटें तैयार की हैं। बीटेक आईटी व आयुर्वेद से पंचगव्य की पढ़ाई कर चुके डॉ. लोहा ने बताया कि उन्होंने गाय के गोबर से ईंट व वैदिक प्लास्टर बनाने का हुनर अपने गुरु डॉ. एसडी मलिक से सीखा, जो वैज्ञानिक हैं। गाय के गोबर से बनी ये ईंटे लैब टेस्टिंग में सामान्य ईंट के मुकाबले सस्ती और मजबूत पाई गई हैं। गोबर से बनी ईंटें पूरी तरह बैक्टीरिया मुक्त भी हैं।
आधुनिक विज्ञान के जीवाणु सिद्धांत के अनुसार बैक्टीरिया को पनपने का मौका तब मिलता है, जब उनके अनुकूल वातावरण हो। शीत ऋतु में शीत के वायरस व गर्मी में गर्म वातावरण के वायरस जन्म लेते हैं। वैदिक प्लास्टर युक्त भवन एडोबटेक्निक (काब और एडोब सिद्धांत) पर आधारित होने के कारण गर्मी में ठंडे व ठंड में गर्म होते हैं। जिससे प्रतिकूल वातावरण में वायरस नहीं पनपते, जबकि सामान्य ईंट वाले घर में बैक्टीरिया के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है, जिससे वह कई गुना पनपते हैं।
ऐसे बनती हैं गाय के गोबर से ईंटे
गोबर की ईंट तैयार करने के लिए मिश्रण तैयार करते हैं। जिसमें 90% गोबर और 10% मिट्टी, चूना, नींबू का रस, बेल का फल मिलाया जाता है। इसे सांचों में ढालकर वैदिक ईंट बनाई जाती है। एक हजार ईंट बनाने में 1600 किलो गोबर लगता है।
ऐसे बनता है वैदिक प्लास्टर
वैदिक प्लास्टर बनाने के लिए गोबर, जिप्सम, मिट्टी, भूसा, रेत और कुछ प्राकृतिक पदार्थ का यौगिक तैयार किया, जो क्रिया करके सशक्त प्राकृतिक पाउडर बनाता है। इसे पानी के साथ मिलाकर ईंट की दीवार पर प्लास्टर कर दिया जाता है। ये दीवारें ब्रीदिंग वॉल्स का काम करती हैं। ऐसे स्ट्रक्चर्स में ऑक्सीजन की मात्रा भरपूर होती है। वैदिक प्लास्टर में भी गोबर की मात्रा 90% होती है।
110 डिग्री पर नहीं जली ईंटें
पंचगव्य सिद्धांत के अनुसार गाय के गव्य के गुणों की जिस दिशा में वृद्धि की जाए उस गुण को गव्य कई गुना बढ़ा देते हैं। इसी सिद्धांत के आधार पर गोबर में कैल्शियम को थोड़ा-सा बढ़ाया तो यह मजबूत बन गई। गाय के गोबर से बनी ईंटें 110 डिग्री तापमान पर न तो जलती हैं और न ही पानी में गलती हैं।
ठंड-गर्मी से मुक्त हैं वैदिक हाउस
गोबर की ईंट में मिट्टी, भूसा व प्राकृतिक पदार्थ का उपयोग होता है। ये चीजें ऊष्मा को अवशोषित करके अपने अंदर रखती हैं और बहुत धीमे छोड़ती हैं। इस तरह से यह तापमान को बहुत अधिक समय तक नियंत्रित करके रखती है।
वेदिक गौ शाला बनाने का मिला कांट्रेक्ट
दमोह के मांगज वार्ड पांच निवासी डॉक्टर चयन लोहा ने बताया कि उनकी मां शुरू से ही गौ सेवा कर रही हैं। इसलिए बचपन से पर्यावरण बचाने के लिए काम किया है। उन्होंने बताया की रिपोर्ट बताती हैं कि यदि इसी तरह केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग होता रहा तो 1012 साल में देश के 20 राज्य बंजर हो जायेंगे, इसलिए यह करना जरूरी था। उनके पास अभी तीन वैदिक गौ शाला बनाने का कांट्रेक्ट आया है, जिस पर काम चल रहा है। डॉक्टर लोहा ने बताया उनके भाई ने भी इसी तरह का पैकेज छोड़ दिया था और वह भी इसी काम में लगे हुए थे। सितंबर महीने में उनका निधन हो गया। पिता तपन लोहा पीएचई के रिटायर्ड एसडीओ थे दो साल पहले उनका भी निधन हो गया है। अभी उनके पास ईंट के कई ऑफर हैं जिस पर वह काम कर रहे हैं।